"कुछ पत्थर भी टूट जाते हैं,वक्त की मार से।
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी रज़ा क्या है।
तेरे हर ज़ख्म को,मुकद्दर का नाम देकर भुलाया,
ज़िन्दगी बता इसमें मेरी,.. गुनेह गारी क्या है।
टूट कर भी,हमेशा सम्हाल लिया खुद को,
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी.. खता क्या है।
हर इनकार को भी,तसल्ली का घूंट समझकर पी लिया,
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी खुद्दारी की.. कीमत क्या है।
हर तूफान की मार को,खुद में छुपाया,
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी..भरपाई कहां है।
अश्कों से आंखों को भिगोकर,चेहरा पानी से धो लिया,
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी बेवफाई क्या है।
ऊपर से मजबूत बनाने की ज़िद में, बिखर गए अंदर से,
ज़िन्दगी बता इसमें,मेरी..नफ़रत कहां है।
तुझको पाकर भी ज़िन्दगी, तुझको समझते रहे,
ज़िंदगी बता इसमें..मेरी जगह.. तेरे लिए कहां है।
मेरी जगह.. तेरे लिए.. कहां है।।"
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