विरह की जो घड़िया हैं, कटती नहीं,
मिलन मे ,ये सुईयाँ जी! रुकती नहीं!
मिले जो बलम, मैं बताऊ उन्हें,
रतिया ये, बिन उनके, कटती नही!
बहती बयार, तन छेड़त जाए,
जो ना देखू उन्हें, साँसे चलती नही!
पीर मन मे मेरो, ऐसो होवत जाए,
नादाँ अधर बातें करती नही!
पाजेबन मोरी क्यों मौन हुई,
चूड़ी भी अब काहे बजती नही!
विरह की जो घड़िया हैं, कटती नहीं,
मिलन मे ,ये सुईयाँ जी! रुकती नहीं!
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