थी तीव्र उत्कंठा ,
मिलने की उनसे.
समय ने रचा ऐसा खेल.
हो गई दूर अब,
हर एक चाहत.
टकरार की घृणा में,
हुआ विवेक शून्य.
प्यार के संगम में,
पड़ गई दरार.
नहीं मिलेगा अब उनसे,
आशीष इश्क़ का.
उतर गया था दिल से,
रूबरू की अलख में.
पल भर में पहन लिया,
अनजान घटा का चोला.
था व्याकुल में इस क़दर,
क्लांत दिल अडिग रहा.
जो पहले रहता था,
रूबरू का शोर.
धुंधला होकर छिप रहा,
समय के पहिए में.
बन न सका सहनशील,
मौन की चुप्पी टूट गई.
विध्वंस हुई इश्क़ की साधना.
जिसे पहनाया था सिंदूर.
आज वही हो गई विमुख.
न हो पाएंगे उऋण कभी.
न भुला पाएंगे वो पल.
@RomySingh ✍️❤️
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