हम आज भी हर दिन ,
बहुत सारा समय ,
अपने मन की जमीन पे ,
बहती भावनाओ की ,
उस नदी के किनारे बैठे रहते है ,
अपनी आंखो के गर्म पानी को ,
उसकी बहती ठंडी जलधारा में मिला आते है ,
जिसके जल को अपनी हथेली पे रखकर ,
हम अपने सपने ,अपनी ख्वाहिश को,
किसी के कहने से
या खुद से हारे द्वंद में ,
किसी अपने के रुठ जाने के डर से
उनकी तिलांजली दे आते है ...
-krishna
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