Krishna Singh Chauhan   (krishna)
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मेरी गुमशुदगी के पर्चे लगे हैं सारे शहर में
और ढूंढने मै तुझे निकला हूं
Joined 31 March 2021


मेरी गुमशुदगी के पर्चे लगे हैं सारे शहर में
और ढूंढने मै तुझे निकला हूं
Joined 31 March 2021
4 JUN 2021 AT 17:02

ये जो जा रहे हैं सच में,
चले ही जाऐंगे क्या |
हम अकेले हो रहे हैं ,
अकेले ही रह जाऐंगे क्या |
जो ख्वाहिशें जला कर ,
दिन में अंधेरा कर गये हैं,
वो उजाला बन फिर से ,
लौट कर आयेंगे क्या ..

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27 MAY 2021 AT 18:32

तुमने जहां खडे होने को कहा था ,
मैं वहीं खडा हूं ,लोग भी कह रहे हैं ,
कि हर रास्ता यहीं से होके जाता है ,
पता नही तुम किस रास्ते पे मुड गये हो ..

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25 MAY 2021 AT 14:29

हां माना जिंदगी थोडी बेदर्द होती है ,
कभी रुलाती है तो कभी हंसना भी सिखाती है,
अगर उसने हाथ छोड दिया तो क्या हुआ ,
एक बार इसका हाथ थाम के देखो ,
सुना ! आखिरी सांस तक साथ निभाती है..

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26 APR 2021 AT 10:34

काफिर हो गया हूं अब मैं उसके लिऐ ,
अब वो मुझे टुकडों प्यार करती है ..

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21 APR 2021 AT 8:03

अगर चाहिऐ पिता दशरथ,
और माता कौशल्या सी ,
तो बेटा राम सा तुमको बनना होगा |
अगर चाहते हो पुरुषोत्तम आयें तुम्हारी कुटिया में ,
तो अतिथियज्ञ मां शबरी सा तुमको बनना होगा |
हनुमान बनना कठिन नही है ,
पर लहू के हर कतरे में ,
तुमको राम नाम लिखना होगा|
बस एक बार ले लो नाम राम का ,
अंतःमन के हर रावण को मिटना होगा |
🚩 मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जय हो🚩

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3 APR 2021 AT 21:27

मत भाग इनके सवालो से ,
ये बेशर्म जमाना है ,
आज तू खुद के जबावो को ,
इनके सवालों से भिड जाने दे |
और सुन जिंदगी तेरे हर किस्से का ,
हिसाब होगा ,
बस तू एक बार कहानी तो बन जाने दे |

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3 APR 2021 AT 9:38

किसी दरिया में बहती कश्ती सा मैं ,
और पतवार किसी के हाथों में ,
चलना पेशा हो गया है मेरा ,
चाहे आगे भंवर हो या ऊंची लहर ,
कभी लहरों से टकराता तो ,
कभी भंवर में फंसकर निकलता मैं |
अब कहीं जाकर ठहरी है कश्ती ,
अब उसने संभलना शुरु किया है ,
बहुत जर्जर जो हो गया था मैं |

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1 APR 2021 AT 16:02

इन किताबों ने बहुत कुछ दिया है मुझे ,
घर छुडवाकर एक कमरा दिया है मुझे |

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31 MAR 2021 AT 16:40

हम आज भी हर दिन ,
बहुत सारा समय ,
अपने मन की जमीन पे ,
बहती भावनाओ की ,
उस नदी के किनारे बैठे रहते है ,
अपनी आंखो के गर्म पानी को ,
उसकी बहती ठंडी जलधारा में मिला आते है ,
जिसके जल को अपनी हथेली पे रखकर ,
हम अपने सपने ,अपनी ख्वाहिश को,
किसी के कहने से
या खुद से हारे द्वंद में ,
किसी अपने के रुठ जाने के डर से
उनकी तिलांजली दे आते है ...
-krishna

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