Upanishads are the storehouses of ancient Indian knowledge
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In this world everything is fulfilled (complete) and if fullfillness imerge from enything fullfillness still remains
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अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् ।
उदार चरितानां तु वसुदैव कुटुम्बकम॥
महा उपनिषद (श्लोक ७१)-
ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ 'ನಾಸ್ತಿಕ'ನಿಗು ತಾನು ಹೋಗುವ ದಾರಿ ಮುಚ್ಚಿದಾಗ ತಾನು ಹುಡುಕುತ್ತ ಹೋಗುವದು
'ವೇದ,ಉಪನಿಷತ್ತು'ಗಳ ಕಡೆಗೆ ಹೊರತು ಮನುಷ್ಯರ ಕಡೆಯಲ್ಲ..!-
The space between bondage and liberation measures 2feet only.Bondage says 'this is mine' and liberation says 'nothing is mine.'
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'श्रेय' जिससे मनुष्य का सच्चा कल्याण हो और
'प्रेय' जिससे मनुष्य को तात्कालिक सुख मिले।।
~ कठोपनिषद-
बुद्धिमान को उचित है कि वह अपनी वाणी को मन में संयमित करे और उस मन का ज्ञानरूप आत्मा में अर्थात बुद्धि में संयम करे बुद्धि का महतत्त्व में संयम करे और उसका शांत आत्मा में संयम करे।
~ कठोपनिषद-
Controlling over mind is more difficult than taking control over 1 lakh horses
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एक मनुष्य अपनी सीमित और अपूर्ण इन्द्रियों से सब कुछ नहीं देख सकता। आपको क्या देखना है इसका आप पूरा चुनाव करके ही देखते हैं। कभी आपको अनायास, संयोगवश कुछ अनचाहा, अनियोजित दिखाई भी दे जाए, तो उसको अर्थ तो आप अपने अनुसार ही देते हैं न? तो जो दिखाई दे रहा है वो आपकी प्रतिछवि है। आप ही गलत हैं, तो आपकी छवि कैसे ठीक हो सकती है तो फिर आपका नजरिया कैसे सही हो सकता है?
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सत्य में यदि जियेंगे आप, तो आप नहीं जियेंगे,
फिर सत्य जियेगा, आप नहीं होंगे; आपको
अगर होना है तो आपको असत्य ही होना पड़ेगा।
जब तक आप अपनी निजी सत्ता और निजी
व्यक्तित्व लिए हुए हैं, तो आपके साथ वो सब
सीमाएँ और बंधन चलते ही रहेंगे जो आपके
दुःख के कारण हैं।
~ वेदांत-