तुम्हारे लिए मैंने
कितना कुछ किया,
खुद को बदल कर
तुझको जिया,
अब सोच कर डर लगता है,
क्या बीच हमारे कुछ नहीं रहा,
खुद को खो कर
तुझसे मिला,
रोक कर अपनी मुस्कान,
तेरे होटों की
लकिरों को सींचा,
क्या बीच हमारे कुछ भी नहीं रहा।-
8 NOV 2020 AT 14:42
5 OCT 2024 AT 10:53
मन के आँगन में खिला एक पौधा,
गुलाब की तरह महकता रहा..!
उद्भव उत्सव उत्तम अद्भुतम,
चिड़ियों की भाँति दिल चहकता रहा..!-
1 APR 2020 AT 21:24
जब हम लौटे,
उन दहलीजों पर,
गलियों से गुजर,
आंगन में उतर,
देख हुये दंग,
वो सूना मंजर,
बीता जो कल,
मिट है गया,
रह गया खंडहर,
और एक वीराना,
अवशेष यहाँ कुछ,
अब बचा नहीं,
उम्मीद तब सभी,
फिर खत्म हुयी,
हम भी लौटे,
बस उसी पहर,
और उसी जगह,
फिर आ पहुँचे,
निकले जहाँ से,
सपने ले कर।-