SHIVA KANT   (SHIVA KANT)
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Joined 11 September 2021


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12 SEP AT 14:05

चल पड़े क़दम,मोहब्बत की राह पर मुस्कुरा कर..!
क़ैद होने इश्क़ में,तेरे दिल को चुरा कर..!

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12 SEP AT 9:56

छूट गया कुछ अधूरा सा,हसरतों के हिमालय में..!
एक अनोखी प्रदर्शनी लगी,ख़्यालों के संग्रहालय में..!

टूटा दिखाया ख़ुद को,ज़ख़्मों से भरा तन रहा..!
ज़िन्दगी की तलाश में,मुलाक़ात मौत से मन रहा..!

मुरझाया चेहरा एक जगह ठहरा,पहरे में यूँ भेद रहा..!
कर न सका एक ख़्वाहिश पूरी,इस बात का हरपल खेद रहा..!

ज़िन्दगी की भागदौड़,न जाने कितने नक़ाब ओढ़..!
पीछे रिश्ते आगे दौलत,अकेले चले हैं सबको छोड़..!

बना चुके हैं ख़ुद को कठोर,ज़द्दोज़हद या कैसी ज़िद..!
अपने ही बैठे अपनों को नोंचने,बन कर ज़ालिम गिद्द..!

न देर न दूरी ये कैसी मजबूरी,सोच बनाई बड़ी गुरूरी..!
पर जीतने से बेहतर हार जाना है,ग़र अहम् से अधिक अपने ज़रूरी..!

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11 SEP AT 13:22

मोहब्बत के मधुरं गीत का,क्या ख़ूब अलग अंदाज़ है..!
गूँजते मन के पहाड़ों में तेरी,सुरमई सनम आवाज़ है..!

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11 SEP AT 9:50

दिल की बात जज़्बातों के साथ,कैसे रूह तक पहुँचाऊँ..!
वो भाया दिल को इस कदर जानी,मन ही मन में सकुचाऊँ..!

लिखूँ पत्र कर एहसास एकत्र,भावनाओ को जगाऊँ..!
राह हो जैसे पगडण्डी प्यारे,हालातों से डगमगाऊँ..!

मुरझाये पन्ने ख़्यालों के क़ातिल,आख़िर जाऊँ तो कहाँ जाऊँ..!
चुभते शब्द लगें उगते रवि से,काँटों को फूल बताऊँ..!

घुटन भरी ज़िन्दगी से,कैसे निजात मैं पाऊँ..!
मोहब्बत के नगर में अपना भी,एक छोटा सा घर बसाऊँ..!

नाम उसका दिल की,सुर्ख दीवारों पे लिखाऊँ..!
ख़ूबसूरत हसीं चेहरे को,मन का दर्पण बनाऊँ..!

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10 SEP AT 13:09

खिले ख़्वाब ख़्याल कहीं,रहमत की बरसात हुई..!
ज़िन्दगी हसीं हसरतों संग,सहमत जवाँ बात हुई..!

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10 SEP AT 9:34

तेरी चाहत के घुँघरू बाँध,मैं मीरा सी जोगी बन जाऊँ..!
इश्क़ में एक अरसा बीता,मोहब्बत की रोगी बन जाऊँ..!

चले न साँसे बग़ैर तुझ बिन,हवा सी तैरूँ फ़िज़ाओं में..!
सुकून के पल मन की हलचल,महफ़िल बने भुजाओं में..!

कोई राग मधुर मुद्दतों बाद,बैरागी सा व्यवहार करे..!
काश! हमारा भी कोई,हमसा इंतज़ार करे..!

न चाह स्वर्ण न चंद्रमा की,न नभ का कोई लोभ करुँ..!
मन को मिला जितना सही सब,न तनिक भी प्रलोभ करूँ..!

साथ तेरा मिल जाये केवल,इतनी सी अरदास है..!
अथाह नहीं बस जीने को काफी,थोड़े प्रेम की आस है..!

खिले कमल ख़्वाबों का,ख़ूबसूरत ख़्याल रहे..!
तेरे इश्क़ में ज़िन्दगानी,सदा-सदा ख़ुशहाल रहे..!

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9 SEP AT 14:12

मिले नज़र जो समां बने,ख़ूबसूरत नज़ारे नैनों को भाये..!
स्वेच्छा से सुरमई शाम संग,मुलाक़ातों का हसीं दौर सुहाये..!

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9 SEP AT 11:13

हर लम्हा मेरे नाम न बेशक़,थोड़ी ज़िन्दगी सँवार लो..!
कि गुज़रने से पहले वक़्त कुछ,संग हमारे गुज़ार लो..!

दम्भ के पहाड़ों में,ऊँच-नीच का काम क्या..!
तुम आहिस्ता से ही एकदफ़ा,नाम मेरा पुकार लो..!

हाज़िर तुम्हारे लिए तुरन्त हम,वादियों सी तुम बहार लो..!
पुस्तक कोई जो चाह हो पढ़ने की,ख़्वाहिशों के पन्ने आँखों में उतार लो..!

नज़रबंद का प्रबंध,तुम रख लो दिल की जमीं पर..!
जज़्बातों को ज़िन्दा बना आज़ाद परिंदा,सम्पूर्ण अम्बार लो..!

मैं शब्द वही बन जाऊँगा,तुम चाहे जो सोच-विचार लो..!
कोरे काग़ज़ सी ज़िन्दगी में मेरी,रंग भरने का अधिकार लो..!

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8 SEP AT 13:17

बाँहों में भर के ख़्वाब ख़ूबसूरत,खिलते ख़्यालों का प्रसार देखूँ..!
तेरे संग मैं इस जहाँ के,सबसे हसीं लम्हें यादगार देखूँ..!

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8 SEP AT 9:27

चंद मुलाक़ातों की बातें,अक्सर वही ख़्यालों की रातें..!
मोहब्बत भी होती उन्हीं से,जो न हाल-ए-दिल बताते..!

गुस्ताख़ी झाँकी मन में कितना,कब तक रहें ख़ुद को सताते..!
बीत गई जवानी ये ज़िंदगानी,एकतरफा इश्क़ निभाते-निभाते..!

ज़द्दोजहद जारी इश्क़ में लाचारी,अड़चन बनी हैं अलग-अलग जातें..!
दिल का दरिया सूखा बेचारा,थके अरमानों की लाशें बहाते..!

वो पल वो ख़्वाब काँटों से घिरे गुलाब,दिल को जानी अब न सुहाते..!
बुझदिल है बेक़द्रा कहीं इश्क़,मन को केवल इतना समझाते..!

अंतिम पड़ाव ये कैसा चढ़ाव,चाँदी सा चाँद ख़्वाहिशों के कुण्ड में डुबाते..!
दिलकश नज़ारा ओढ़ अँधियारा,बुझ गए मेहरमाँ हम उन्हें चाहते-चाहते..!

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