दिल में सँभाल रखा है,एक अनोखा पुस्तकालय..!
एहसासों और जज़्बातों का,सम्पूर्ण विशाल हिमालय..!-
अभी सूरज की तरह तप रहा हूँ,
कल सूरज की तरह चमकूँगा भी🌞😊😊🌞
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जो गिर चुके हैं नज़र में मेरी,
वो कभी मेरे ख़ास नहीं हो सकते..!
कितना भी ऊँचा उड़ने की कोशिश कर लें,
पर आकाश नहीं हो सकते..!
मत दो दिलासे किसी के छोड़ जाने से मुझे,
अकेलेपन में मेरे ख़्याल उदास नहीं हो सकते..!
कुछ पल की तकलीफ़ों से पार पा ही लेंगे,
यूँ ख़ाली बैठे निराश नहीं हो सकते..!
और जो क़द अपना दौलत के ढेर से बढ़ाते हैं,
उनसे कह दो यारों कभी वो कैलाश नहीं हो सकते..!
चार दिन की ज़िन्दगी कट जानी है जवानी,
दो दिन का लगाव दिखा कर कोई प्रकाश नहीं हो सकते..!-
क्या लिखूँ तुम पर मैं,शब्दों का चयन कैसे करूँ..!
इस शादी की सालगिरह पर,फिर से ऐसे माँग भरूँ..!
कि हर राय मशवरा तुमसे लूँ मैं,थोड़ी अपनी बतलाऊँ..!
ख़्वाबों को बना कर हक़ीक़त,सुनहरा जीवन तुम्हें दिखलाऊँ..!
जो चाहो तुम वो दे सकूँ तुम्हें मैं,इतना मेरा प्रयास रहेगा..!
मैं धरा तुम्हारे दिल का और,प्रेम मेरा आकाश रहेगा..!
एक तोहफ़ा प्यारे से बेटे के रूप में,जो तुमने मुझे दिया है..!
अपने पिता को जैसे पाया वापस,मैंने हर लम्हा ऐसे जिया है..!
सुख का सवेरा चाहेगा तुम्हारे,चेहरे की रौनक़ बनना..!
तुम ढलते जीवन में भी,धैर्य की शौनक बनना..!
क़दम से क़दम मिला कर सिर,फ़क़्र से ऊँचा करना..!
कितनी मोहब्बत है मोहब्बत से,मुझसे तुम पूछा करना..!
हर ख़ुशी जहाँ की मिले तुम्हें,ईश्वर से मेरी अरदास है..!
तुम हो तो जीवन हसीं और,तुमसे ही जीवन में मिठास है..!
ये अल्फ़ाज़ ये एहसास ही,मेरी तरफ़ से तुम्हारा उपहार है..!
अभी इतना ही कह सकता हूँ,बाकी सुन्दर भविष्य भेंट के लिए तैयार है..!
Happy Anniversary My Dear Wife🥰😘-
एक गुलाब को क्या गुलाब दूँ,मानों मुझ अंधे को क्या ख़्वाब दूँ..!
मैं इश्क़ में ख़ुदा बना बैठा उसे,अब उस ख़ुदा को क्या ज़वाब दूँ..!-
रिश्ते
मतलब के
बनाने लगे हैं
कहते हैं सच ये
जानने में ज़माने लगे हैं
काम पड़ने पर गधे को बाप
ज़रूरत पर सबसे नज़रें चुराने लगे हैं
अफ़सोस का कोष बढ़ता रहा ये मान कर
देर की समझने में पर कर्म कमाने लगे हैं
नई सोच हुआ करते थे कभी हम भी ओ यारों
आज हालातों के आगे अपनों को ही बासी पुराने लगे हैं-
कहने को अपने हैं बहुत मग़र,किसी से न कोई ज़बरदस्ती है..!
उजाले में साया साथ चले पर,अँधेरे में यूँ तन्हाई डसती है..!
अपने में मशग़ूल सभी,रिश्तों को गए भूल तभी..!
अमीरी-ग़रीबी का भेद बता कर,ज़िंदगियाँ जीने को तरसती हैं..!
हालातों का हवाला देकर,मज़बूरी की बाढ़ में बहकर..!
सामने हमदर्दी दिखा,पीठ पीछे खुल कर हँसती है..!
अमानवीय सोच निर्दयी समाज,मक्कारों की यहाँ बस्ती है..!
किनारे पर आके देखा गजब ये,डूबी भावनाओं की कश्ती है..!
जग में अपने को बलशाली दिखा कर,फ़ब्तियाँ क्यों कसती है..!
माँगें से लगे मौत भी महँगी,पर ज़िन्दगी सभी की सस्ती है..!
कर्मों का खेल यही है,स्वर्ग-नर्क का विभाग भी सही है..!
उभरे कोई तो धरा किसी की,कर्मों के फल से ही धँसती है..!-
बुरे वक़्त में साये थे हम,कभी अपने कभी पराये थे हम..!
सही कहते हो तुम क्या मिलेगा सिला,ये सोच कर घबराये थे हम..!
चार सौ लोगों में न साथ कोई था,कन्धे पे न हाथ कोई था..!
ख़ुद को समझ कर क़रीबी तुम्हारा,तनिक यूँ इतराये थे हम..!
मिले तसल्ली दिल को तेरे,कब तक ग़म के बादल घेरे..!
देकर थोड़ा संग सहारा,दुःख को कुछ हद तक हराये थे हम..!
लौटा कर चमक चेहरे की तुम्हारे,लगे दिल को इतने प्यारे..!
सुबह की चकाचौंध हो जैसे,वैसे ही थोड़ा मुस्कुराये थे हम..!
अब बदला समय तो बदली बोली,भाषा में अपशब्दों की टोली..!
अच्छा सच्चा बन कर जाना,ख़्यालों में पथराये थे हम..!
दौलत के आगे कोई बड़ा न,गरीबी में कोई साथ खड़ा न..!
समझ आ गया क्या गलती की और,किसलिए गए ठुकराए थे हम..!
सबक मिला तो जान गए हम,ख़ुद की औक़ात पहचान गए हम..!
जीतना चाहा हार कर ख़ुद को,यही गलती बड़ी दोहराये थे हम..!-
मोहब्बत का युग जैसे ख़ुद में,इश्क़ की सदी लपेटता है..!
समेट लूँ आ बाँहों में तुझे मैं,जैसे सागर नदी को समेटता है..!-
टपकता रहा मकाँ मेरा,आँसुओं का सैलाब बहा..!
भीगी रातें ज़िन्दगी की,अब हसीं वो ख़्वाब कहाँ..!
सीलन पड़ी दिल की दीवार पे,उतरते एहसास का उजड़ा जहाँ..!
चाँद की चमक चुभती आँखों में,क़ैद पँछी मन का उड़ा कहाँ..!
अब तो तन्हा तस्वीर सुहाती,तक़दीर जाने क्या है चाहती..!
जिधर चले क़दम उधर ही,आग और फ़ैला धुआँ धुआँ..!
कोरा कागज़ जीवन मेरा,ख़ाली ख़्यालों का बना कुआँ..!
सुख कम सुख अधिक,ये ज़ुल्म कैसा जीवन जुआँ..!
मुसाफ़िर रहा मैं ताउम्र सफ़र पे,न मिली कभी मंज़िल..!
ज़िन्दगी की तलाश में,दिया अपना सब कुछ गवाँ..!
न चाहतों का आसमाँ,न ही मुक़म्मल मुलाक़ात मिली..!
मिला न मुक़द्दर में,प्यार करने को हमनवा..!
न बची एक भी ख़्वाहिश,और न ही पूरे अरमाँ हुए..!
जीने की चाह ख़त्म कर,हम फिर से हुए न कभी जवाँ..!
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