टिंडे सी है ज़िंदगी मेरी,
ना किसी की चाहत,,
ना किसी की पसंद...
सिर्फ़ मजबूरी ही तो हूँ मैं..
बेस्वाद सा, बेकारा,,
ना कोई उमंग,,
ना कोई तरंग...
बस हर कोई मुझसे तंग...
सभी के अपने ज़ायके हैं,,
सभी के अपने किस्से..
पर मजबूरी का नाम टिंडा,,
बस यही मुहावरे हैं मेरे हिस्से...
जिस तरह टिंडा पड़ा रहता है,
फ्रीज के किसी आखिरी कोने में,,
मेरे भी जज़्बात दुबके रहते हैं,
किसी काठ के परिंदे की तरह...
हाँ,, मैं भी टिंडा ही तो हूँ...
©विक्की...📝-
18 JUL 2019 AT 16:14