वह मनोवैज्ञानिक मेरे रचे संसार में खो गया था
मैं यह नहीं सुन सका कि वह क्या बड़बड़ा रहा था
पर मेरे दिमाग में उसकी सभी बातें बैठ रही थी
मैंने भी लगभग कुछ उसके जैसा पढ़ा था
पुलिस वहीं खड़ी थी, यह तो स्पष्ट था कि वह मुझे और नहीं मारना चाहते थे,
परंतु एक वरिष्ठ पुलिस ऑफिसर के आदेश उन पुलिसवालों के वश में नहीं थे
अन्य पुलिस वाले उसकी बात ना मानने का संकट मोल नहीं लेना चाहते थे
चेतना के सागर में डूबते उभरते वह मुझे आधा उठाकर लगभग घसीटते हुए
यातना कमरे की ओर ले जा रहे थे,
मुझे एक कमरे में पटका और इसके पश्चात वह मुख्य पुलिस ऑफिसर उनके साथ बहस करने लगा
वह बहुत क्रोध में था और किसी भी हालत में वह मेरा मुँह खुलवाना चाहता था,
मुझे उन बातों से कोई लेना-देना नहीं था,
और मेरे पैरों में इतनी शेष शक्ति नहीं थी कि मैं अपना सिर उठा कर देख सकता,
वह ऑफिसर आदेश देने लगा' मेरी चमड़ी को उतार दिया जाए, और वह चला गया,
उन्होंने मुझे हथकड़ी से बांध दिया
और मेरे तलवों पर और कमर पर डंडे बरसाने लगे
मैं दर्द से चिल्लाने और एठने लगा, मैं भयभीत हो रहा था, ऐसा लगा कि कहीं में मरने तो नहीं जा रहा,
फिर दो पुलिस वालों ने
मेरे कंधे और मेरे सर को तब तक दबाए रखा
जब तक मैं अपनी सारी शक्ति गँवा कर अचेत नहीं हो गया।......
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