फिर कोई दीवाना हुआ था
अब याद उसे वो पल आया।।
जब वो मिट्टी का दीवाना हुआ था।
फिर लौट आऊंगा मै ये वादा करके,
वो घर से रवाना हुआ था।
अब आखिरी पलों में अपनों का खयाल।।
मास्तिष्क में आना जाना हुआ था।
गोलियां कहां तोड़ पाई थी गुरूर उसका,
मौत से तो उसका रिश्ता पुराना हुआ था।
गोलियों से छलनी जिस्म लेकर।।
सिखर चढ़ता एक दीवाना हुआ था।
फिर मौत भी उसको धीमे ही आयी...
मौत से उसकी,
मौत को ही गम सबसे जादा हुआ था।
चिलचिलाती धूप में जहां समंदर भी शुख़ जाएं,
वहां इंसान वो पत्थर हुआ था।
कहीं कपकपाती हवाओं में,
मशाल-सा पर धीमा, ख़ुद को जलाए हुए था।
मिट्टी पर जान न्योछावर कर।।
ममता से अगले जनम का वादा हुआ था।
अपने सभी के वादे अधूरे छोड़,
एक मिट्टी का कर्ज़ अदा हुआ था।
तिरंगे में लिपटा मुस्कुरा रहा था मानो।।
आख़िरी कोई ख्वाहिश पूरा हुआ था।
भस्म बन फिर कोई कहानी ख़ाक हो गईं,
फिर कोई मिट्टी का दीवाना हुआ था।
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