"एक किन्नर"
ईश्वर की बनायी एक शख़्सियत हूँ मैं
सबसे अलग़ सबसे जुदा लेकिन रखती एक अहमियत हूँ मैं
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
समाज में इज़्जत नहीँ है मेरी, लोग मुझे देख हँसा करतें हैं
लेक़िन फ़िर भी उन्हीं लोगों से पैसे माँग कर अपना पेट भरती हूँ मैं
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
कभी सड़कों पे तो कभी ट्रेनों में तालियां बजाती हुई मिल जाती हूँ मैं
इसलिए नहीं की वही मेरा घर है बल्कि इसलिए की मेरा कोई घर ही नहीं है
हाँ, किन्नर हूँ मैं...
किसी के घर ख़ुशियाँ आने वाली हो तो सबसे पहले जान जाती हूँ मैं
बिन बुलाये ही उसके घर अपना आशीष देने पहुँच जाती हूँ मैं
और गर्व से कहती हूँ - "हाँ, किन्नर हूँ मैं..."
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