अधूरे किस्सो में दफ्न राज़ कई हज़ार होते है....
जो इश्क़ मुकम्मल न हो पाए!
त्यों अल्फ़ाज़, कागज़ की चादर ओढ़ लेते है!.....
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मैं शाम कोई मदहोश , तुम बेहकाती हुई शराब हो!
मैं चख लू जो तुझे , मेरे होंठों पर ठेहरा तुम कोई शबाब हो!
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पर पतझड़ के बाद भी पेड़ निराश नहीं होता,
क्यूंकि वो जानता है कि,
पतझड़ के बाद हरियाली को फिर से आना है.
इसीलिए तू हंसते रह, निराश ना हो टूटे दिल वाले,
विश्वास कर,
इस घड़ी को भी घड़ी-दो-घड़ी के बाद निकल जाना है.-
अल्फ़ाज़ों मे कशिश लिए उतार देते हो कागज़ पर मुझें !
ये तो बताओ,
कहानी हूँ मैं या फ़क्त कोई क़िस्सा तो नही ?-
तेरी साज़िशों ने मेरी इबादत को इख़्तिबाज़ में उकेरा है !
मेरा सज़दा करना तेरा ख़ुदा हो जाना ये ठीक तो नही न ज़िन्दगी !!-
लिखती हूँ अर्ज़ी तुम खुदगर्ज़ी पढ़ लेते हो !
क्यों इनायत को मौला मेरे इबादत समझ लेते हो !!-
अक्सर शब्दों को रूठते देखा है खयालातों से !
ज़ुबान को बिगड़ते देखा है जज्बातों पे !!
ना ढूंढ तू जवाब, सवाल कई उलझे है !
अमूमन जिदंगी के कुछ किस्से फक्त बिखरने के ही हिस्से है !!-
कुछ इस क़दर तराशती हूँ उसे मैं खुदमे!
के उसके अक्श को अपने ज़ेहन मे उतारती हूँ जैसे!!-
वो मेरी अमाँ सी ज़िन्दगी में पूनम सी है ।
कुछ अधूरी कुछ पुरी, मेरी ग़ज़ल सी है ।।
उस अनामिका पर बस हक मेरा ही रहे ।
ये चाहत आज से नही बरसों से है ।।-