जब जब मैनें मां की बात नहीं मानी है ,
तब तब मैंने मुंह की खायी है ।-
पूछने पर अक्सर सफाई देने लग जाती है
वो मान क्यों नहीं लेती
यहां भूल की सजा मौत तो नही।-
जिस ओर जवानी चलती है
उस ओर जमाना बढ़ता है
फ़ुरसत के खिलौने साथ लिए
मसरुख निभाना पड़ता है..!-
जैसे हम तो कभी थे ही नहीं
कुछ यूं हमें भुलाए बैठे हैं।
पर न जाने क्या खास है उसमें
जो हम अब भी दिल से लगाए बैठे हैं।।-
वो मुझे छोड़ चला गया कुछ यूं रोता हुआ
जैसे चांदनी जाती है पथिक को छोड़ सोता हुआ।-
मंदिर यहां बने या मस्जिद वहां बने हमको क्या काम
भई आस्था जहां बैठ गए वहीं राम का निजधाम!-
क्या तुझसे भी कोई अच्छा है,जो सूरत पराई देखूं
नजरें तुझ से हटे जब तो जमाने की सच्चाई देखूं
मैं छोटा सा आशिक हूं हकीम कोई ना
ये क्या बात हुई कि हर किसी की कलाई देखूं!-
कौन कहता है इश्क में कुछ नहीं होता हासिल
क्या इन आंसुओं की कोई कीमत नहीं?-
जो न आना था तो फरमान क्यों भेजा
खत तो लिखा पर होठों का निशान क्यों भेजा
ये धरती लोगों से सुनी तो नहीं थी
फिर चांद तारों से भरा आसमान क्यों भेजा
मुझे क्या होगा मैं मां की दुआओं से आबाद हूं
ये तलवार,भाले और जंगी सामान क्यों भेजा
जब जीतना था तो सामने कोई दोस्त रखा होता
समझ नहीं आता दुश्मन इतना आसान क्यों भेजा-
तुझसे बातें करूं या तुझे गले से लगाऊं
बता तुझे वो जख्म भला कैसे दिखाऊं
इतनी रात और आंखें खुली ये पूछते हो
इन्हें तो बंद भी कर लुं मगर नादां दिल को कैसे सुलाऊं-