हर वो चीज जो चमकती है,आंखों सी लगने लगती है
ये वो उम्र है जब घर की खिड़कियां भी सलाखों सी लगने लगती है-
ये तन्हाई कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ती!
हमारे सब गम अब ठिकाने लग गए हैं
हम अपने दुख को गुनगुनाने लग गए हैं
चलाए थे अंदाजन मैंने कुछ तीर वहां पर
ताज्जुब ये है कि सब निशाने लग गए हैं-
हो किनारे पर या फिर पानी में उतरकर अच्छी लगती है
जुल्फें खुली हों या फिर हों बिखरकर अच्छी लगती है
उसकी हर अदा ही है कातिलाना बस इतना समझ लो
वो आए ऐसे ही या फिर सज-संवरकर अच्छी लगती है
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हर ऐरे-गैरे को मुस्तकबिल समझ बैठा
वो पत्थर दिल नहीं तु पत्थर को दिल समझ बैठा
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जो न आ सका तेरे किसी काम इससे बड़ा क्या ग़म होगा
ऐ मिट्टी, तेरे इश्क़ में तो ख़ाक होना भी कम होगा-
तमाम उम्र ढूंढता रहा खामियां औरों में
इस तरह गुमराह किया मैंने खुद को तमाम उम्र।-
वक्त ने जिसे तराशा नयाब वही हीरा है
वगरना घड़े की कीमत तो सभी जानते यहां-
परेशानियों से परेशान
होकर परेशानियों को छोड़ देने से
परेशानियां कम कहां होतीं हैं
बल्कि परेशानियां, परेशान करने हेतु
प्रबल रूप लेकर परेशान व्यक्ति को
और भी परेशान करने आ जातीं हैं-
मुझमें इस तरह आज भी वो जिंदा है
रात गुजरती है ख्वाबों में, दिन उसे याद करके-
मशवरा क्या लेना किसी से सफर-ए-इश्क में
ये वो तजुर्बा है जो तजुर्बे से होता है।-