मैं जो जाता हूँ महफिल में,
लोग शेर तुम्हारे सुनाते है
अब नहीं जाऊँगा किसी महफिल में
लोग मुझको बहुत सताते है
पूछते है मुझसे जब भी नाम मेरा
जाने क्यों तुम्हारा नाम लगाकर बुलाते है
कम्बख्त..ज़रा देखो न इन सबको
सरेआम ये सब कितनी बाते बनाते है
मैं नहीं जाऊँगा अब किसी भी महफिल में
लोग मुझको बहुत सताते है
लोग मुझको बहुत सताते है
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