अजी..
करके तो देखिए,
आईने से अपने..
आप ज़िक्र हमारा
वह सूरत-ए- आपकी देख कर
हाल हमारा बताएगा-
सुनो..
तुम ही कहो..
हुए कैसे ख़फ़ा.. हम
अपने सितमग़र से..
हमें है यक़ीं.. की होगा
विसाल हमारा दिसम्बर में-
होंगे.. कई हमसे भी..
कई तुमसे भी अच्छे, यहाँ
पर एक हम है.. जिसे
तुमसे अच्छा कोई और लगता नहीं-
आज सवेरे उठ कर देखा..
छोटी उँगली पर अपनी मैंने
निशाँ काला पाया था..
फिर आया याद, कल सपने में
मैंने तुम्हारी आँखों से काजल चुराया था-
पहचान लेते है, हम उन्हें दूर से ही
उनके माथे के तिल से...
और वो पूछते है हमसे
“के कभी भीड़ में खो जाएँगे
तो हमें ढूँढोगे कैसे”-
यह भी ठीक रहा..
वक़्त बेवक़्त की बातें हमारी
वक़्त रहते ख़त्म हुई..
दूरियाँ देखो दूरियाँ ही रहीं
नज़दीकियों में बदल कर
ज़ख़्म न हुई-
काश के हो गयी होती
अदा.. रस्म-ए-रिवाज़ें बीच हमारे
तो हम भी लगा कर हिना तुम्हारे हाथों में
पिलाते तुम्हें पानी..
“कल” महताब देख कर-
ख़ता उम्र भर करी
इश्क़ में हमने बस यहीं
न तुमसे निगाहें मिला पाए
न नज़रें तुमसे चुरा पाए-
सुना था यूँ तो हमने
कि हो तुम भी हमारे ज़माने की
जाने फिर तुम्हें मोहब्बत
इस ज़माने की क्यूँ हुईं-
तुम लहंगा गुलाबी पहन कर आना
साथ में हवन की लकड़ी और सामग्री लाना
मैं फल, फूल, पंच मेवे ले आऊँगा
पसंद है तुम्हें जो रंग हलका सफ़ेद
वो शेरवानी पहन आऊँगा
मिलेंगे उसी मंदिर के पीछे
दो गली छोड़ आम के पेड़ के नीचे
बैठ पर जहाँ करी थी ढेरों बातें
और किए एक दूसरे से हज़ार वादे
सुनो.. भूल जाऊँ अगर मैं लाना वरमाला
तुम करके फ़ोन मुझे फिर याद दिलाना
और जो मैं कह दूँ, हाँ पता है भई..
तो तुम मुझसे रूठ न जाना
तुम मंत्र सारे पढ़ दे ना
मैं रस्म अदा हर कर दूँगा
हम वचन अपने अपने कह देंगे
मान कर अग्नि को साक्षी, सात फेरें भी ले लेंगे
दो रूह को एक इस तरह कर देंगे
क़ायनात में कल, सहर से जब मिलेगा चाँद
ख़्वाबों में ही सही, हम दोनो विवाह कर लेंगे-