जब चला जाता है कोई घर से, तब हटा दी जाती है, अगले दिन.. सब वस्तुएँ उसके नाम की… मकान से कमरा/सभी दराज़ें कर देते है ख़ाली, कुछ चीज़ें दे देते है दान में ! यह सोच कर, की किसी ज़रूरतमंद के काम आयेगी धीरे धीरे कर के सब हट जाता है। जगह जगह उसकी बिखरी चीज़ें, जिस से उसकी उपस्थिति का आज तक, एहसास होता था ! वह सब…
रह जाती है तो बस यादें, और इन यादों से भरा हुआ ख़ालीपन, क्यूँकि! यह घर में होती है न… मकान में नहीं !
मिला जो तुमसे आज यहाँ दिल ने मुझसे पूछ लिया.. क्या आज तुम कुछ नहीं कहोगे.. लिखते हो यूँ तो हज़ार बातें.. कहो क्या आज कुछ नहीं लिखोगे
मैंने कहा.. जबसे देखा है मैंने तुम्हें हाल-ए-दिल कुछ जुदा सा है.. क़ायनात फ़िज़ा में खो सा गया है हुआ था ना जो यार अभी तक.. मिल कर तुमसे हो सा गया है ख़याल दिल में बैठें है.. बात ज़ुबाँ पर रहती है.. अब मैं ख़ामोश रहता हूँ ये आँखें ही सब कहती है
कभी किसी रोज़.. अनजाने में ही सही, आओगे.. वो बातें सभी जो दिल में छुपी है.. हौले से ही सही, कह जाओगे.. होगा समा कुछ ज़र्द सा, दिल में हल्का दर्द सा.. जब चुरा कर नज़रें ज़माने से.. यार.. तुम मयंक से मिलाओगे.. हाँ.. कभी किसी रोज़, अनजाने में ही सही.. आओगे पता है ! वो ख़त में लिखी बातें, उम्र भर के वादे, उलफ़त की हवा, ले आओगे याद रहता है, कि भुलानी है जो यादें यार हर याद, साथ ले आओगे.. एक बार-ए-आख़िर, क़ायनात में हम मिलेंगे कभी किसी रोज़.. अनजाने में ही सही, तुम आओगे..
AKELE CHHOD JATE HO YE TM ACHA NHI KRTE HAMARA DIL JALATE HO YE TM ACHA NHI KRTE. KYA YE B MOHABBAT HE MOHABBT HI ISE RAKHO TAMASHA TM BANATE HO YE TM ACHA NHI KRTE .... UTHATE HO SAR-E-MEHFIL FALAK TAK TUM HAME LEKIN UTHAKE JO GIRATE HO TUM YE ACHA NHI KRTE..... KABHI JO POOCH LE TMSE KE. AB RISHTA KYA HE MUJHSE TO NAZARO KO JHUKATE HO TUM YE TUM ACCHA NAHI KARTE
मैं एक, सर्द रात दिसम्बर की तुम धूप, जनवरी की लगती हो मैं जितना तुमको पढ़ता हूँ उतनी अजनबी तुम लगती हो लोग कहते है, के जो लफ़्ज़-लफ़्ज़ मैं बुनता हूँ मेरी नज़्मों में तुम मिलती हो सर-ए-राह पुकारे कोई नाम मेरा तुम मुड़ कर देखा करती हो कुछ तो बात, मेरे नाम में होगी जो लगा कर, अपने नाम में घुमा करती हो सुनो.. सच कहना, मोहब्बत तो तुम्हें भी है मुझसे फिर जताने से क्यूँ डरती हो मैं.. एक सर्द रात..
आईने में दिखता हर शख़्स, ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगता है हमें अपना ही घर, जुदा जुदा सा लगता है. बस एक शम्मा जल रही है. यादों की, बाक़ी सब कुछ बुझा बुझा सा लगता है.. दीवारों, पर बसर तन्हाई है. क्यूँ शोर में,खामोशी छाई है, हमने चराग़ तक न जलाय तुम्हारे जाने पर, हवा में, फिर भी धुँआ धुँआ सा लगता है.. उन ज़र्द मरासिम के ख़ातिर ही.. एक रोज़ तो मिलने आ जाओ तुम बिन देखो.. आसमाँ में, महताब आधा कटा कटा सा लगता है तुम बिन देखो.. यह सर्द दिसम्बर जला जला सा लगता है
हिंदी जीवन संगिनी है उर्दू से मोहब्बत है मुझको हिंदी भोर की है पहली किरण उर्दू तुम्हारी यादों का बाग़ीचा है हिंदी है बात आख़िरी विरह के कुछ पल पहले की उर्दू उम्र भर की उम्मीद है तुम्हारे लौट कर आने की