चांद
एक चांद को, अपनी रोशनी पे नाज़ होना चाहिए ।
सिर्फ दिखने में नहीं, भीतर से बेहतर और ख़ास होना चाहिए ।
कुछ समय दें खुद को, अपने आप को जानें।
जिसे ख़ुद की ना ख़बर हो, उसे कौन चांद मानें।
खुद की फितरत और हुनर पे, विश्वास होना चाहिए।
एक चांद को, अपनी रोशनी पे नाज़ होना चाहिए।
इन्सान, इन्सान को इन्सानियत से जानता है।
सच्चा हो हृदय तो, हर कोई उसे मानता है।
माना हुस्न पे दाग हो, दिल बेदाग होना चाहिए।
एक चांद को, अपनी रोशनी पे नाज़ होना चाहिए।
दिल बेदाग हो इसलिए, सच्चाई पे टिकना पड़ता है।
हर भटकाव को छोड़, खुद की ख़ामियों से लड़ना पड़ता है।
फितरत ऐसी हो, जो दगा करे उसे भी अफ़सोस होना चाहिए।
एक चांद को, अपनी रोशनी पे नाज़ होना चाहिए।
क्यूँ सोचता है चांद, कोई उसकी तारीफ करे।
वो चांद ही क्या, जो अपने आप में ही संकोच करे।
क्या डरना जब कोई साथ ना दे, बस खुद की नीयत साफ़ होनी चाहिए।
एक चांद को, अपनी रोशनी पे नाज़ होना चाहिए।
Pritam Singh Yadav
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