मैं तुम्हें फिर मिलूंगी..
कब, कहाँ, कैसे पता नहीं..
-रचना अनुशीर्षक में-
और इन कांटो को
इश्क़ के गुलदस्ते से
तरतीब दी जाये
तो ये भी अपनी नाजों-अदा से
एक अलग महक छोड़ते है 😋-
नजर पुरुषों की
खराब
मगर ,
घूँघट स्त्रियों के
लिए
ये है पुरूष प्रधान
समाज की
उच्चस्तरीय
निम्नतम
सोच..-
प्रेम का प्रमाण यह भी है,
कि तुम मुझे मेरी पायल
की छनक से पहचान लेते हो...-
तुम ना सितंबर की
बारिशों की तरह हो,
आते हो शीतल
हवाओं के साथ,
और समेट लेते हो
मेरे मन में फैले
सारे विषाद,
बिखेर देते हो मन
प्रसन्न करने वाली
रंगीन मस्तियां,
जैसे सितंबर की बारिशें,
सोख लेती है सारी ऊमस
और बना देती है
मौसम को और भी
ख़ुशनुमा..!!
--- साहिबा ✍🏻
-
तेरी यादों के नशे में चूर हूँ मैं.
वक्त के हाथों मजबूर हूँ मैं..
गुमनाम थी एक अर्से तक...
अब साहिबा नाम से मशहूर हूँ मैं....-
प्रेम में फूल तो सभी
देते है,
तुम मुझे देना एक
मोरपंख,
तेरे प्रेम को स्याही
बनाकर ,
मैं उसी मोरपंख से
लिखूंगी
एक नवीन प्रेम ग्रंथ...!!-
लुट गए हम तेरे हुस्न-ओ-बहार में
कत्ल सरेआम हुये तेरे चश्म-ए-मस्त दीदार में-