Ask those crumbled sheets in the bin
For the number of times i tried
To compliment your name with an adjective
But to no avail.
Million times i struck off a word
And millionth time i lay unaware,
That your name compliments mine instead,
While no single word can describe you.-
ऐ ज़िन्दगी तू भी किराये की कसर रह ही जाती है,
छाप हो कितनी भी मजबूत बेअसर रह ही जाती है।
निकल गयी ज़िन्दगी अब दम-ए-बाज़-पसीं है बस
जुगनू कोई न कोई देखने की बसर रह ही जाती है।
कहानी उधड़ी कुर्ती में पिरोई थी जो जमीन तले,
वो दब जाए चाहे क़ब्र में ख़बर लेकिन रह ही जाती है।
कितनी ही बुनी हो हदीस-ए-लब-ओ-रुक्सार तूने,
सीने में क़ैद तमन्नाओं की सहर रह ही जाती है।
ना कर पायेगा ख़ुश इस दुनिया को बेरहम है बहुत,
पाँव में छाले फूट जाते है डगर कोई रह ही जाती है।
इंसान मेहज़ हर्फ़ सा बिखर मिल जाता है मिट्टी में,
पहचान ही बदल जाती है लहर रह ही जाती है।।
रूह तेरी चल देती है बन दूसरे जिस्म का सहारा,
राख़ हई तेरे चमड़ी में अस्थियाँ मगर रह ही जाती है।।।
(न्यायग्र)
-
कुछ रिश्ते किराये के मकान
के जैसे होते हैं....
उन्हें कितना भी सजा़ लो
पर वो कभी अपने नहीं होते...-
Sometimes I think
my life as a wreck.
Let me rent it to
someone who
makes full of it.-
घर का लाडला होकर घर का मेहमान बन बैठा हूँ,
कभी गाँव का याराना था अब मुसाफ़िर बन बैठा हूँ,
गाँव में सब कुछ है अपना ऐ ज़िन्दगी,
तुझे सवारने के चक्कर में, लखनऊ का किरायेदार बन बैठा हूँ!!-
जुळते आपुलकी दोन - चार माणसांशी
एवढीच काय ती मिळकत असते,
नाहीतर,
कितीही जीव गुंतला भाडेकरूचा जरी चार भिंतींमध्ये,
वेगळे होणे त्यांचे कधी टळत नसते...-