Ranu Saklecha
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तेरे रक़्स मे हम-रक़्स है सवाल मेरा
जवाब की वादा खिलाफ़ी मुक़र्रर हुई.....
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दो चार गाम(कदम) तो चल मेरे साथ
मेरे एतबार पर थोड़ा एतबार तो कर ....
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तेरे शानो पर पनाह चाहती हैं ख्वाहिशें मेरी
तू दरम्यां है तो रुबरु क्यूँ नही होता .....
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बड़ी बेतरतीब सजावट है राह-ए-इश्क़ की
विसाल से खूबसूरत किस्से हिज़्र के हैं.....
रास आती नही दुनिया को यूँ उल्फ़त
फैसले जुनूँ के हैं , नतीज़े जाँ के हैं .....
मेंरी आँखों मे नशा अब रहता नही
तेरी सूरत-ए-निशाँ बेवजह के हैं.....
नक़्श-ए-कदम महोब्बत के हौसले पर
मेरी जान अब तेरी बेज़ार अना के हैं.....
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सब्ज़ है तेरी यादों की किलकारियां अभी ,
अभी मौसम बहार का है , सदा ना दे ....-
कहानियों मे से कुछ किस्से निकाल रही हूँ....
ज़िन्दगी से ज़िन्दगी के कुछ हिस्से निकाल रही हूँ
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कोई भी हो , किसी और कि ही बात करता है
कब , कौन , कहाँ मुझसे मुलाक़ात करता है ......
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तरफ़दारी करने लगा है मेरे ख़्वाबों की वो
मेरा मेहबूब अब मेरा राज़दार हुआ जाता है
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