इतनी उ'जलत में तक़मील हुआ इश्क़
ख़्वाब जो सारे थे तेरे सरहाने रह गए
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मुसाफ़तों का दौर गुज़र गया , अब ठिकाना चाहिए
आपनी मिट्टी से बिछड़ा हूँ , मुझे लौट जाना चाहिए
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मैं ख़ुश-गुमाँ हूँ अपनी ही मौजूदगी से
आप को खोकर तेरी आरज़ू क्या करते....
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ये अदालत मुल्तवी हो लिखिए
फैसला मेरे ख़िलाफ़ लिख दीजिये
पहला गुनाह मेरा इश्क़ लिखिए
दूसरा आपसे हुआ लिख दीजिये
तीसरा गुनाह महोब्बत लिखिए
अगला बेपनाह हुई लिख दीजिये
अब गुनाह की एक फेहरिस्त लिखिए
उसमे मेरा नाम बदनाम लिख दीजिये
अब मासूम सी एक ख़्वाहिश लिखिए
हर गुनाह हो मेरे नाम लिख दीजिये
ज़िन्दगी को लाज़िम-ओ-मलज़ूम* लिखिए
ज़िन्दगी में जिंदादिली रही लिख दीजिये
( *एक दूसरे के लिए जरूरी )
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तू रश्क़-ए-बहार है , मैं तुझसे इश्क़ करती हूँ
तू इब्तिदा लिखता है , मैं तूझे बेइंतहां लिखती हूँ
तू तस्वीर पर रुका है , मैं तासीर पर झुकती हूँ
तू आँख लिखता है , मैं आँखों में ख़्वाब लिखती हूँ
तू साथ होता है , मैं हाथों में हाथ रखती हूँ
तू बात लिखता है , मैं उसमे जज़्बात लिखती हूँ
तू एक पल रुकता है , मैं एक उम्र ठहरती हूँ
तू इंतज़ार लिखता है , मैं एतबार लिखती हूँ
तू सौदागर-ए-दिल है , मैं तेरे हाथ बिकती हूँ
तू हुक्म लिखता है , मैं हुक्म-ए-तामीर लिखती हूँ …….
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तसव्वुर को नई कोई बागबानी दे
तेरे हिस्से की मुझको एक कहानी दे
निकाल मसरूफ़ियत का जनाज़ा
इश्क़ को थोड़ी सी मेहरबानी दे
दयार-ए-नाज़ है मुझको दिल तेरा
मुनव्वर हो रास्ता ऐसी निगहबानी दे
रायगां हुए वादे वस्ल के सारे
हिज़्र महके ऐसी कोई निशानी दे
निज़ाम-ए-कुदरत से कोई गिला नही
वक़्त दरमाँ-पज़ीर हो ऐसा कोई सिला दे
#RANU_SAKLECHA
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ये शहर आबाद हुआ , तेरी मौजूदगी से
फिर में क्यूँ दर-बदर हुआ तेरी मौजुदगी में
जवाँ आंखों में सपने हैं , तेरी मौजूदगी से
फिर क्यूँ में हूँ गुमशुदा तेरी मौजूदगी में...
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तरफ़दारी करने लगा है मेरे ख़्वाबों की वो
मेरा मेहबूब अब मेरा राज़दार हुआ जाता है
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तेरा जमाल मेरा जवाल हो नही सकता
जो है दुनिया का हाल मेरा हो नही सकता...
तेरे पहलू में रुका हूँ तो मदहोश ना समझ
में तेरे हाथ का रुमाल हो नही सकता ....
जैसे "जॉन" चीखता था बदन उसरत मे
में भी दोहराऊं वो मलाल हो नही सकता...
तू पाक दामन है ,तू किनारा कर ले
में मसरूफ़ हूँ तुझमें , में सो नही सकता.....
ये दुनियां भले मजनू फ़रहाद की कहानी है
मेरी जान ये दीवनगी हो फ़ना हो नही सकता......
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