तुम आदमी नहीं हो किसी काम के 'सागर'
हर वक़्त तुम्हें कोई न कोई काम होता है-
वो फरेब करता है मगर अच्छा कहो उसे
सुनना फरेबी उसको भी अच्छा नहीं लगता-
फूलों को फूल सा कोई फूल मत समझो
ये जख्म दें न दें मगर ये दाग देते हैं-
अदब से पेश आते हैं,न जाने क्या समझते हैं
पुराने जो भी साथी हैं, मुझे ख़ब्ती समझते हैं
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जीना है तो हुनर वफ़ा का सीखो और अमल करना
मेरे जैसे लाख फरेबी आते हैं,मर जाते हैं-
कल रात इक सवाल ने सोने नहीं दिया
तेरी गुर्बत को मिटाऊँ तो मिटाऊँ किस तरह-
रंगीन मौसम का ऐसे रंगारंग हो जाना
एक फागुन का महीना और उसपर आपका आना-
उदास देखकर बच्चे को रोने लगी बुढ़िया
पागल भी होकर वो माँ तो माँ ही होती है-
न हो ताल्लुक तो अच्छा है अंजान ही रहें ।
मैं करूँ इश्क तो फिर ऐसा कि आशिक कहें जिसे ।।
मैं खुश रहूँ जैसे कि सबकुछ मिला मुझे ।
मैं रोऊँ तो फिर ऐसा कि रोना कहें जिसे ।।
रहूँ खामोश तो खामोशी ही पहचान हो मेरी ।
कहूँ कुछ तो फिर ऐसा कि कहना कहें जिसे ।।
मैं माँगू तो कर दूँ तुझे भी कंगाल ऐ खुदा ।
मैं जो दूँ तो फिर ऐसा कि दानी कहें जिसे ।।
मैं गमज़दा हूँ तो अब गमज़दा रहूँ ।
मैं जो हँसुं तो फिर ऐसा कि हँसना कहें जिसे ।।
-Raj Sagar
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