कवि और प्रेम
मृत में भी प्राण है-
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मैने प्रेम तुम्हारे मौन से किया है
यौवन तो एक दिन ढल जाएगा
पर जब वो मौन टूटेगा तो खिल
जाएगा संसार सूर्य की किरणे
असंख्य पक्षी चहचहाएंगे असंख्य
तरुवर अंगड़ाइयाँ लेंगें असंख्य
जीवन नई ऊर्जा से दीप्तिमान होंगे
मैने प्रेम तुम्हारे मौन से किया है
सोचो जिस दिन तुम कुछ कहोगी
असंख्य प्रेम नव जीवन प्राप्त करेंगे-
है इश्क तो जाहिर कर
यूं चुप चाप चाहत कहां
हैं दिल में तूफान तो बागी बन
यूं छुपकर राहत कहां-
संवार लो ना मुझे इन मुस्कुराहटों में
मै लिख दूंगा मेरी हर चाहत तेरी इन शरारतों में-
मय आँखें
मय मन
मय सी चंचल
तेरी चितवन
मय में डूबा मैं
है तेरी थिरकन
मत पूछ मुझसे
है ये कैसी उलझन-
मेरी उम्मीदों का एक सिरा हो तुम
मै कैसे रूठ जाऊं तुमसे,
तुम से ही तो मैं जो हूं जो कुछ भी
कतरा कतरा मोहब्बत जोड़कर
अभी भी वही खड़ा हूं मैं-
अजीब सी फंसाहट में हम अब जीते है
मोबाइल फोन से छुटे तो आसपास की
शोरगुल सरीखे है...है पास नहीं कोई
अजीब से वजीफे है भागदौड़ की दुनियां
में खुदकी धड़कन भी नहीं बची अपनी
क्या हवा क्या पानी क्या खुशियां अब
कहां हम इन्हें जीते है वो हरा रंग पेड़ो
का वो सुर्ख गुलाब और उसकी भीनी
खुशबू कहां अब इन्हें जीते है हैं पास
में ही पगडंडी और क्यारियां कहां अब
इन्हें आंखों से पीते है ना रखते नंगे कदम
कभी धरती पर ना घास पर चहल कदमी
नहीं ढूंढते सुकून इन्में अब कहां हम वाकई
जिंदगी जीते है अजीब से फंसाहट में फंस
चुके है नकली दुनियां में इक मोबाइल की
नहीं देखते कि उसी घर में हमारे कितने
रिश्ते अभी भी प्रेम, बातचीत सुकून हंसी
ठिठोली के लिए तरसे है अजीब सी
फंसाहट में हम अब जीते है-
कच्ची उम्र में लोग सच्ची में प्यार कर भी लेते है
ये जो पक्क जाते है बेकार हो जाते है प्यार के लिए-
प्रीत मेरी तुम जैसी
जैसे तुम गीत जैसी
जैसे तुम मीत जैसी
जैसे तुम प्रीत जैसी
जैसे तुम संगीत जैसे
प्रीत मेरी तुम जैसी-
कुछ नहीं बस यूं सुकून सा हो पल मेरा
अब और क्या लिखूं हर शब्द मेरा है ही तेरा-