होलिकोत्सवसंपन्ने, स्नेहः सन्तु परस्परम्।
रागद्वेषविनाशाय, रंगोत्सवः शुभायते॥
May this festival of Holi strengthen mutual love, remove all traces of hatred and be auspicious for all.
regards,
Raj Sagar and Family 🎨-
#rajsagar
📷 https://www.instagram.com/its.rajsagar/
🔶Proud Hindu N... read more
उन आंखों में अश्क सजाते हो 'सागर'।
जिन पलकों पर काजल तूझे लगाने थे।।
यूं बदनाम तवायफ ही होती होंगी।
तुमको तो जग भर में नाम कमाने थे।।
खुद कालिख क्यूँ पोत ली तुमने चेहरे पर।
तुमको तो सबके ही दाग़ मिटाने थे।।
कांटे क्यों बोए हो तुम ये गमलों में।
तुमको तो उपवन में फूल खिलाने थे।।
तुमने उससे उसको ही क्यों छीन लिया।
तुमको तो खुद ही उसके हो जाने थे।।
उन आंखों में अश्क सजाते हो 'सागर'।
जिन पलकों पर काजल तूझे लगाने थे।।-
पहली बार समंदर देखा तब मुझको एहसास हुआ,
ऐसा ही कुछ मिलता जुलता उन आंखों में देखा था।-
पूर्व से आती हुईं चिड़ियों ने मुझसे ये कहा
शाम जब होने को आए 'राज' घर जाया करो।
थकन की राहों में चलते राहगीरों ने कहा
इस तरह जब थक गए तो 'राज' घर जाया करो।
दोस्तों ने हाल पूछा और बस इतना कहा
इस कदर बेहाल हो तो 'राज' घर जाया करो।
कल मिली तन्हाई में इक याद ने मुझसे कहा
इस कदर गमगीन हो तो 'राज' घर जाया करो।
रतजगा करते हुए तकिए ने देखा और कहा
नींद यूं आती नहीं तो 'राज' घर जाया करो।
गिर रहे रुखसार पर से अश्क बूंदों ने कहा
चाहिए मुस्कान हो तो 'राज' घर जाया करो।
हादसों के मार से बेचैन होकर 'राज' भी
खुद को खुद समझा रहा है 'राज' घर जाया करो।-
क्या क्या न जूर्म मैंने मोहब्बत में किये हैं
क़दमों में तेरे मैंने दस्तार रख दिया-
तुमको लगता है कि सब कुछ ख़त्म हुआ
अभी हिज़्र की एक रात बस बीती है-
हंस पड़े कल दोस्त मिरे इस हाल पर
रो पड़ा था मैं तिरे किसी बात पर-
उस रोज से मैंने कहीं कुछ सच नहीं बोला
इक रोज उसने मुझको झूठा जो कहा था-
गम-ए-हादसों में सर के सब बाल झड़ गए
आदमी हसीन थे अपने शहर के हम-
चालाकी तो जरुरत है इस पेशे की
खानदानी लोगों से इश्क नहीं होगा-