"मैं काला"
मेरा रंग भी काला, मेरा रूप भी काला..
मेरा अंग भी काला, मेरा ढंग भी काला..
मेरा वस्त्र भी काला, मेरा नेत्र भी काला..
मेरा समय भी काला, मैं पीता चाय भी काला..
और इतेफ़ाक से आज तो
मेरी कलम भी काली और उसमें श्याही भी काली..
ये दुनियाँ भी काली, यहाँ की रातें भी काली..
यहाँ के लोग भी काले और उनके करतूत भी काले..
यहाँ के रिश्ते भी काले, यहाँ के वादे भी काले..
पर इन सब काली चीज़ों में अच्छी बात
ये है कि मेरा तो सिर्फ नाम ही है "काला"..
ना मेरा दिल है काला, ना मेरा मन है कला..
ना मेरी जुबाँ है काली, ना मेरी सोच है काली..
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