हक़ीक़त_ए_सुबह
कलयुग का असर दिखने लगा है।
इंसाँ,इंसाँ का दुश्मन बनने लगा है।
जानवरों सा व्यव्हार हो गया है।
खून का दरियां बहने लगा है।
कही पर रेप कही पर दंगे देखो।
इनमें खुदी का जुनू उभरने लगा है।
पांव पीछे हटने का नाम नहीं लेता।
बेगैरत की आग सुलगने लगी है।
हवस की कहर दिखाई देती है।
लोगों मे इंसानियत मिटने लगी है।
छाया है अंधेरा गुमराह का।
सच्चाई का सवेरा डूबने लगा है।
दरारे पड़ने लगी है इस जमीं पर।
सारे घर वीरान पड़ने लगे हैं।
ख़त्म होने लगी इल्म की वजूद।
सारे हाथो मे खंजर उठने लगें है।
कलयुग का असर दिखने लगा है।
इंसाँ,इंसाँ का दुश्मन बनने लगा है।
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