हमारे दरमियाँ फ़ासला कुछ यूं हैं।
देख पाना मुनासिब हैं।
हाल बायां करना मुमकिन नहीं,
चाहत है तहज़ीब सा समेट कर रखूं,
पर हमारी मोहब्बत मुकम्मल हो,
ये ख़ुदा को भी गवारा नहीं,-
क्यों बनाई मोहब्बतों का सिलसिला ऐ ख़ुदा तूने।।
असल में जब बिछड़ जाना ही इश्क़ का दस्तूर हैं।-
इक चाराग़ सा है सुकूँ जिंदगी का।
पायेंगे इकरोज़ रौशनी ये हम भी।।
मुश्किलें मिलाई है हाथ अभी दोस्ती का
करेंगे इसे विदा बड़े प्यार से हम भी।।-
उनसे कभी नफ़रत
तो कभी बेपनाह मोहब्बत।
कभी तू-तू मै-मै
तो कभी जी, हाँ,आप।
ये पागलपन इश्क़ की निशाँ हैं।-
गुज़रता वक्त, ढलती उम्र और चाहतों का मेला।
अपने साथ हैं तो मज़मून और ख्वाबों का मेला।
कभी ढूंढू खुद को तन्हाइयों में लेकर एक शाम।
सुकु तलाशे कहां कहां जिंदगी है एक झमेला।
बचपना गया हुए जवां फिर ढल जाएगी उम्र।
कभी चढ़ना फिर उतर जाना वक्त का है खेला।
है सब ख़ुदी में ख़ुद परस्त व्यस्त और चिंतित।
है किसी को न ख़बर कौन साथ कौन अकेला।
है सभी को चिंतन सुधारे कैसे आर्थिक स्थिति।
भटक रहे इधर उधर आए कैसे चार कौड़ी ढेला।-
बिछड़ना मुकर्रर है गुस्ताख़-ए-दिल्लगी में,
हिकमत मेरी फिर भी धोखा खा गया।
वो कसमें-वादें किए जो इश्क़ के मजार में,
वक्त रुख यूं बदला सर चक्कर खा गया।-
शुकू में साथ और तपिश में हाथ छोड़ दूं।
इतनी कमज़ोर चाहत तो नहीं हमारी।।
ये इश्क़ है तेरे मेरे दरमियाँ वर्षों का...
तुझे बग़ैर होठों तक लगाए कैसे छोड़ दूं।-
थम जाएं ये गुजरता वक्त और साथ मैं भी।
भुल कर सारी मुश्किलें और ताल–मेल भी।-
एक वक्त था,
जब मैं रोता तो माँ आंसू पोंछ बहला दिया करती।
अब तो उन्हें भी पता नहीं चलता की मैं रो रहा हूं।-
जब मौत दस्तक देने वाली होती हैं।
तो लोग बड़े प्यार से मिलतें हैं।
मग़र सारी जिंदगी यही दर्शाते आए
की तेरे लिए कोई यहां नहीं।-