जैसे बादल संग बरसात आया हैं।
करना ही था इज़हार-ए-इश्क़ उनसे,
की किताब संग वो ग़ुलाब लौट आया।
कहना था उनका सात जन्म साथ रहेंगे,
कंबख्त आज सातवें दिन उनका कार्ड आया हैं।-
उलझी-उलझी ज़िंदगी सुलझाऊ क्या,
आओ बैठें एकांत तुम्हे बतलाऊ ख़्वाब।
क्या क्या दबाएं बैठे है इस सीने में,
बचपन से 26 कि किस्सा सुनाऊं क्या।
जब शुरू हुई ज़िंदगी कुछ बनने को,
बना कैसे दीवार पैसा बतलाउ क्या।
सोचा न मानू हार, फिर लगा मुझे
अब कुछ न किया तो पछताऊंगा क्या।
किया फ़ैसला और चलने लगा उस पर,
उलझ चुका हूं अब निकल पाऊंगा क्या।
कहते है लोग बंध जाओ अब बंधन में,
अब एक और कसक सह पाऊंगा क्या।
दिन की थकावट रात की सोचाहट,
बढ़ गई है, इसे सुकून कह पाओगे क्या।
बहुत है, क्या क्या दर्द बताउ अपना,
दिलासा के सिवा दर्द बाट पाओगे क्या।
उलझी-उलझी ज़िंदगी सुलझाऊ क्या,
आओ बैठें एकांत तुम्हे बतलाऊ ख़्वाब।-
रुख ए ज़िंदगी अभी मुश्किलों की भीड़ में हैं।
बदलूंगा मै भी सनम
ज़ाहिर कैसे करूं तेरी हरकतें अदाकारी
जो भी है दफन मेरे दिल में है।-
समंदर ए अश्क़ से विशाल समंदर भी छोटा पड़ जाता है।
मौत को दरवाज़े पर आकर उसे भी लौटना पड़ जाता है।
वो एक अजीब किस्म की मोहब्बत ए वालिदैन हैं।
जिनकी दुआ से रब को भी फ़ैसला बदलना पड़ जाता है।-
कोरे काग़ज़ पर मरने वाला।
रंगीन कागज़ों पर मर मिटा है।
सच में वो वर्षों पहले वाला शक्स
अब मुझमें से निकल पड़ा है।।-
अच्छा हुवा बचपन में बहा लिए अश्क को।
ज़माना आज मज़ाक बना देते मेरे दर्द को।।-
कुछ गलती मेरी थी कुछ वक्त की।
कुछ हालत की कुछ अपने रक्त की।।
संभालते संभालते बिखर गए हम।
बस बचा रह गया है तो आंखे नम।।
सपने सारे टूट गए, खयालात सारे मिट गए।
कुछ चाहत पीछे छूट गए, हम भी कुछ थक गए।।
लेकर करे क्या अब दिल सक्त को।
लेकर करे क्या अब बचे वक्त को।।-