मुहब्बत ना रही पर दोस्ती ज़िंदा है
क़फ़स से रिहा जैसे कोई परिंदा है
तुम्हारे गेसुओं के लिए वक़्त निकालता हूॅं
हाॅं पसंद का काम है, चुनिंदा है
इतना ज़ियादा वक़्त गुज़रा है तेरे शहर में
लोग कहने लगे ये यहीं का बाशिंदा है
दश्त-ए-इश्क़ में निशाना रूह पर रक्खो
बदन बरस दस बरस, रूह पाइंदा है
आख़िरी फ़ैसला हो गया सिक्का उछाल कर
दिल मगर इस बात पर बहुत शर्मिंदा है
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