शायद पागल ही हूं, जो तेरी बातों में ख़ुद को नहीं, तुझको तलाशता हूं। मैं घंटों बातें करता हूं, घंटों मुस्कुराता हूं, तू मुसाफ़िर इस सफ़र में, और मैं, गुजरता एक अंजान रास्ता हूं।
मैं बीता कल भुला, तुझे कल बनाना चाहता हूं। वक़्त को रोक, तेरा हर एक पल बनाना चाहता हूं। कि खुश रहे, तू अपनी ख्वाहशों की दुनियां में, मैं ऐसा, कल बनाना चाहता हूं।
सुन मुसाफ़िर, कभी आ मेरे रास्ते, और मिल मुझसे। अंजान ये रास्ता तेरी मंज़िल को जाता है या नही? पता नहीं, लेकिन तेरा इंतज़ार ज़रूर करता है। ............. कभी यूहीं गुज़र मत जाना अनजाने में, क्यूकी बोहोत वक़्त लगता है एक पहचान को अंजान बनाने में।
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