किंचित हूँ, मैं सहमा और डरा हुआ हूँ।
मुझे कैसे देख पाओगे, मैं मरा हुआ हूँ।
यूँ ही नज़रें चुरा लेता हूँ सबसे हर बात पर
दिखने में खुशहाल, टूटा–हारा हुआ हूँ।
चेहरा नहीं देखा था, इश्क़ करने से पहले
अपने चेहरे की शर्मिंदगी पर जीया रहा हूँ।
मेरा अकेलापन किसी ने छीन क्या लिया
मैं अब अकेले रहने में भी खफा हो रहा हूँ।
कैसे बतायेगा ये दिल! टूट जाने की बातें
बिना आशिक़ी किये, मैं टूटा पड़ा हुआ हूँ।
मेरी शख़्सियत की पहचान मत करना यार
मैं अपने आँसुओं से तेरे लिये हँसा हुआ हूँ।
ओम "ओम" को ना समझ पाया अब तक
मैं तेरे अंदर जलके बुझ जाने वाला दीया हूँ।
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