आज मुझे अपने हाल पर ही छोड़ दो!
अगर दिमाग की कशमकश बढ़ने लगी,
तो उसे बस बढ़ने दो।
चलते वक्त पैर अगर ठहरने लगे,
तो उन्हें बस ठहरने दो।
अनचाहे प्रेम की कली अगर खिलने लगी,
तो उसे बस खिलने दो।
मैं जैसी हूँ, वैसे ही मुझे रहने दो,
आज मुझे बस अपने हाल पर ही छोड़ दो!
आस के अंतिम दीपक अगर बुझाने लगी,
तो उसे आराम से बुझाने दो।
पछतावे की नदी अगर बहने लगी,
तो उसे अपने आप से बहने दो।
ज़िंदगी अगर निराशाओं के समुद्र में डूबने लगी,
तो उसे विस्तार पूर्वक डूबने दो।
मेरी ज़िंदगी जैसी है, उसे वैसे ही स्थिर रहने दो,
आज मुझे बस अपने हाल पर छोड़ दो!
उलझन का फांसा गर्दन को खींचने लगा,
तो ताबड़तोड़ खींचने दो।
कविता अगर मायूस सी लगने लगी,
तो उसे बेजोड़ मायूस होने दो।
दिल का हर एक कोना अगर वीरान सा नज़र आता है,
तो उसे वीरानी में ही रहने दो।
मैं बेबस सी लगने लगी तो, मुझे बस लगने दो,
कहो मत कुछ भी,
नहीं है ज़रूरत किसी के एहसान की,
बस मुझे अपने हालात के बख्श में रहने दो!
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