अपनी मंज़िल का,
पत्थर और धूल को साथी बना
टूटी डगर पर चल निकला हूं मै,
हां रास्ता भटक गया हूं मै।
ना जाने कैसा सुकून है,
इन राहों में जिसपर चलकर,
बस छाले नसीब हुए,
सारे दर्द छुपाए,मुस्कुरा रहा हूं मै,
खुश हूं कि रास्ता भटक गया हूं मै।
मंज़िल का अब इंतजार नहीं,
की सफर इतना खूबसूरत है,
नम है आंखें,की को साथ नहीं,
जिसे कहते हमसफ़र है,
अकेले ही खुद के निशान छोड़े जा रहा हूं मै,
हां रास्ता भटक गया हूं मै।
-