बहुत देर हो गई है!
दिल के एक कोने में आज भी कुछ पुरानी कड़वाहटें हैं,
उनके खत्म होने से पहले, बहुत देर हो गई है।
बीते लम्हों की कुछ कीमती यादें आज भी ताज़ा हैं,
उनके मिटने से पहले बहुत देर हो गई है।
ख़्यालों की बौछार आज भी गिरने को तैयार है,
पर उन अल्फ़ाज़ों को बूंद होने में बहुत देर हो गई है ।
कलम ने कुछ ना लिखने वाली बातों को दर्शाया है,
उन कागज़ों के फटने से पहले ,बहुत देर हो गई है।
मोहब्बत के कुछ फूल आज भी ज़िंदा हैं,
उन पंखुड़ियों को ओस मिलने में बहुत देर हो गई है।
दुनिया में लोगों की चालाकियाँ आज भी वैसी ही है,
उन चालाकियों के नक्श ढूंढ़ने में ,बहुत देर हो गई है।
ज़मीर के अंदर आज भी वो अनकही कहानियां मौजूद है,
उन्हें किताब में उतारने में बहुत देर हो गई है।
ख़ैर "लावण्या" का वजूद अब भी धुंध बन घूम रहा है,
उसे पाक हवाओं में ज़म होने से पहले बहुत देर हो गई है ।
❤️ ला - व - ण्या
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EXPIRY DATE**
The seeds of my Snow Clad Dreams are waiting to sprout,
Water them before they get compressed.
The flame of my aspirations are burning with intense blaze,
Fulfill them before they get extinguished by the Rains leaving a smoke of Regrets.
The bubbles of my opportunities are floating in the tranquil air,
Catch them before they disintegrate into the thin air.
The Rain of happiness is sending its drizzly dews,
Feel it before they evaporate.
The Sunbeams of Hope is glowing,
Smile at it before it becomes an umbra.
The Elixir of Confidence is available in the deserts of Scepticism,
Drink it before it dries off.
The Cookie of Self Love is very scrumptious,
Devour it before it rots.
The Ice Cream of Optimism is appetizing,
Feel its creams before it melts.
Just like how our mortal soul ebbs away with time,
Every thing that comes your way has an expiry date.
Realize their value before they dwindle away in the penitent gravity!
©Lavanya
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Letting go of someone is hard yet we need to .
//READ CAPTION FOR THE CONFESSION BEHIND LETTING SOMEONE GO//-
कशमकश
लिखते-लिखते कलम रुकने लगी,
पता नहीं कि उसे विचारों की कमी लगी,
या आगे की कथा से वो डरने लगी!
क्या वो सच्चाई को दर्शाने से पीछे हटने लगी,
या झूठ लिखने से उसे काँटे चुभने लगे?
चलते-चलते पैर ठहरने लगा,
पता नहीं कि वो दर्द के वजनों से ठहरने लगा,
या आगे बढ़ने से डरने लगा।
क्या थोड़ा चलने से भी बहुत दर्द होता है?
या आगे की जगहों में कुछ अनर्थ होने वाला है?
सोचते-सोचते विचार बंद होने लगा,
पता नहीं कि मन खोखला होने लगा,
या उसके शरीर का हर अंग पिघलने लगा?
क्या उसे अतीत की नाजायज़ यादें सताने लगी,
या भविष्य के पन्ने अग्नि में जलाने लगे?
अब बोलते-बोलते आवाज़ दबाने लगी,
पता नहीं कि उसे शब्दों की कमियाँ होने लगी,
या किसी अनजान दृष्टि को देख वो डरने लगी?
क्या उसे अपने ही जज़्बातों पर यकीन नहीं है,
या आगे बोलने से उसका दम घुटने लगता है?
सोते-सोते नींद भी साथ छोड़ने लगी,
पता नहीं कि वो अतीत से नम होने लगी,
या अंतर्मन के ग़म से वो तड़पने लगी?
*ना जाने ये कैसी कश्मकश है मेरी,*
*मानो ज़िन्दगी ही अचानक कहीं रुकने लगी!*
©लावण्या
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Does leaving the past behind mean forgetting your old writings too?
©️Lavanya
@thepowerofwriting-
काश! मैं अपनी इर्ष्या के पिंजरे में ना जाती।
कोप की लीला ने मेरी इन्द्रियों को अवसान कर दिया,
उसी कारण मैं अग्नि की ज्वाला में जलती रही।
लोभ के साथ जीना शुरू कर दिया,
वरदानों की रोशनी होने के बावजूद मैं अंधी रही।
अपने अभिमान को मित्र बना लिया,
पुष्पों से सजे उन नातों को अलविदा कही।
अधर्म के जहाज में सफ़र करते-करते हवस ने मुझे अपना लिया,
ये कैसी विडंबना थी मैं खुद समझ ना पाई।
अकेलेपन ने मुझे एक भक्षक बना दिया,
जीवन की हर एक घड़ी मनहूसियत बन गई।
इस अवसाद भरे संसार ने अंधकार दिखा दिया,
आखिरी पलों तक एक आलसी पक्षी ही बन गई।
ईर्ष्या के पिंजरे ने इस तरह मुझे कैदी बना लिया,
जिस वजह से आज मैं धंधेवाली बुलाई गई।
©️लावण्या
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IF ONLY!
The Jack Tar discarded his patience from his naive mind,
By clutching on to the Rage that was never to leave.
He rowed the boat of nympholepsy in the river of aphrodisia to find,
The Dulcinea whose love turned from blessing to Deceive.
With the compass of Avarice guiding him to become one of the kind,
He ignored all that glitters of what fortune might weave.
The blew of envy caressed him like the wind,
Giving him the stones of conceive.
Aloofness from all turned his senses blind,
And voraciousness was the gift he would receive.
Jaded and lost he began to trudge the fate and grind,
As the sloth left with no option than grieve.
If only his Vanity dint trap his bellicose mind,
He wouldn't have been pushed into this Deceive.
©️Lavanya
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कैसी है आँखों में ये नमी?
कैसी है आँखों में ये नमी,
जो दर्द को छुपाते हुए थक गई है,
समय के रफ़्तार से कशमकश में डूब गई है,
रोज़- रोज़ मौत की खबर सुनकर अवसन्न हो गई है,
घड़ी की कड़वाहट से परेशान जो हो गई है,
बोलो ये नमी जायज़ है?
कैसी है आँखों में ये नमी,
जो अपने बीते कल को पुकार रही है,
अपनों की याद में खो गई है,
रिश्तों की कड़वाहट को समझ नहीं पा रही है,
अपने ही ज़िन्दगी का लेखा-जोख़ा गिनवा रही है,
बोलो ये नमी जायज़ है ना?
कैसी है आँखों में ये नमी?
जो एक नए आगमन की प्रतीक्षा कर रही है,
अपने कल की तैयारी में व्यस्त हो गई है,
बदलाव की चाहत में तरस रही है,
अपने सपने पूरे करने के जुनून पर अड़ी है,
बोलो ये नमी जायज़ है ना?
कैसी है आँखों में ये नमी,
जो एक अंधे के दिल से बह रही है,
जिसको दृष्टि से वंचित किया गया है,
जिसने कभी अपने ही अपनों को नहीं देखा है,
जो बिना आँख खोले ही रो रहा है,
बोलो ये नमी जायज़ है ना?
©❤️लावण्या❤️
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लिख लिया अब पढ़ेगा कौन?
मैं आज भी उसी किताब में खड़ी हूँ तेरे इंतजार में,
कभी तो पूरी करेगी मुझे तुम यही उम्मीद लगा कर बैठी हूँ।
बरसों पहले जो लिखकर अधूरा छोड़ा था तुमने मुझे,
आज भी उसी बेइंतहा मोहब्बत की आरज़ू में तड़पती हूँ।
वक्त के साथ बड़ी और समझदार जो हो गई हो,
किस तरीके से सजेगी मुझे, यही सोचती रहती हूँ।
मोहब्बत और जज़्बा जो बचा नहीं है पहली की तरह,
मेरे पूरे होने पर पढ़े कोई मुझे उसी तरह ऐसी दुआ करती हूँ।
तेरा बदलता हुआ रवैया, और बदलते वक्त की धूल,
मेरे किरदार पर असर ना पड़ें, इसी चाहत में रोती रहती हूँ।
अगर मेरी पंक्तियाँ पूरी होकर प्यारे ग़ज़ल बन भी गई तो,
उम्र गुजरने के बाद भी वहीं लगन हो ऐसी उम्मीद करती हूँ।
पूरा किया है "लावण्या" ने अपने माजी का एक हिस्सा आज,
तो इस हिस्से को दिल के क़रीब रखने की मिन्नत करती हूँ।
© लावण्या ❤️
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