" मैं और तुम "
मैं दिया तुम बाती हो
मुझे तेरी याद हर पल तड़पती है
तुम मेरे साथ हो तो मेरी जिंदगी खुशनुमा हो जाती है
तुझको मैं अपने हर सांस में पाती हूं
तू जहां भी रहे सही सलामत रहे
मैं खुदा से यही दुआ मांगता हूं-
(1). " मैं और तुम "
मैं और तुम दोनों ही चुप चुप से है
हम दोनों के बीच ये शब्द ही कहीं गुम सी है
मैं गुमसुम सा हू और तुम मोन से हो
ये इश्क़ ही बेजुबान सा हुआ
ऑर दम चाहत का टूटता है
उन्हें तुम सहते सहते ही पथराई सी और मैं उन हवाओ सा
ये महकी महकी रंगीन फ़िज़ाए है
ओ कितनी हसीन समा है
तुम उन चुप्पी को तोड़ो उन बंद होठों को खोलो जरा
अपने लफ्जों को जुबान पर आने दो..
अपने लफ्जों को जुबान पर आने दो
तुम एक बार अपने नजरो से प्यार को बया कर दो
इस दो पल की जिंदगी को जी भरकर हमे जीने दो
मैं और तुम व तुम और मैं
को हम होने दो
हम दोनों को एक होने दो...
हम दोनों को एक होने दो....
Shivkumar barman-
मैं वक्त के पन्नों पर स्याही सा " बिखर जाता हूँ "
मैं चंद गैरों को उनके जैसा नजर आता हूँ
वो मुफलिसी की रातें, वो दिन अब कहां रही
मैं सुबह-सबेरे ही घर से निकल जाता हूँ
ख्वाब देखने की उम्र थी कब की निकल गई
मैं नींद में बिस्तर पर खामोश सो जाता हूँ
उन राहों मे मिल जाते हैं जो कभी मेरे हमसफर हुआ करते थे
मैं मुंह मोड़ के उस पार बैखौफ निकल जाता हूँ
मुझे एक सुकून की तलाश थी जो हमे उम्र भर कभी ना मिली
मैं अपने घर की उन चार दीवारी से रोज टकराता हूँ
उजाले में तेरे साये ही ढूंढते हैं " मेरी जान "
तुझे रात शहरों के शोर में खुद को खो जाता हूँ-
एक अजब सी दुनिया देखा करता था
दिन में भी मैं सपना देखा करता था
एक ख्यालाबाद था मेरे दिल में भी
ख़ुद को मैं शहजादा देखा करता था
हर लम्हे सब्ज़ परी का उड़न खटोला
अपनी जानिब आता देखा करता था
चिड़ियों के रूप बदलकर उड़ जाता था
जंगल, सहरा, दरिया देखा करता था
इक-इक कंकर भी हीरे जैसा लगता था
हर उस मिट्टी में सोना देखा करता था
उस प्यासा रेगिस्तानो में कोई नहीं था
हर सहरा में दरिया देखा करता था
हर जानिब हरियाली मे ख़ुशहाली थी
उन हर चेहरे को हँसता देखा करता था
बचपन के दिन कितने अच्छे होते हैं
सब कुछ ही मैं अच्छा देखा करता था
आँख खुली तो सारे मंज़र ग़ायब हैं
बंद आँखों से क्या-क्या देखा करता था-
कुछ करने का तय किया है तो मन मे शंका मत पालो
तुम्हें जहाँ जाना है तुम उस तरफ कदम बढ़ा लो
मन में चिन्ता ना रखो कि कैसे मंजिल को पाएंगे
कुछ भी ना कर पाए तो खुद से मर जाएंगे
जीवन का हरपल आनन्दित होकर बिताओ
आने वाली मुश्किलों से स्वयं को मत डराओ
तुम्हें जब विजय पाने की लगन लग जाएगी
तुम्हें हराने की किसी में हिम्मत नहीं आएगी
जब तुम भय और संशय का हरण कर लोगे
सफलता तुम्हारे चरण चूमने खुद ही आएगी-
भूली बिसरी यादो के तू भी तो दीप जालती होगी
चंद गुजारे लम्हों की भी तुझको तड़प सताती होगी
मेरे आँचल मे तू सो जाना छुपकर साथ मे रात बिताना
मेरी " आधी अधूरी बातें " तुमको भी तडपाती होगी
हमारी याद तुमको भी कभी कभी तो आती होगी
तू जब मंडप में बैठी थी हाथो में मेहदी रहती थी
माथे पर सिंदूर उसी का, जबसे तू ओर किसी का हुआ है
क्या ? मेरी यादो की खुशबू भी उस मेहँदी से आती होगी
मैंने अपने संग तेरे भी सपने देखे थे
क्या तेरे वादों की बातें तुझको याद भी आती होगी
मैने सुना है बदल गया तु मेरी राहे छोड़ गया तु
उन राहों से भी तू अक्सर कभी कभी तो आती होगी-
मेरा सबसे हसीन ख़्वाब साकार हो जाएगा
तुम्हे जब मुझसे प्यार बेशुमार हो जाएगा
मैंने तुमसे शुरू में तो सिर्फ दोस्ती ही की थी
क्या पता था कि यार ही दिलदार हो जाएगा
तुम्हे बस एक ही बार नज़र भर के देखा था
पता नही था कि दिल यूँ बेकरार हो जाएगा
तुम खुद को एक बार मेरी नज़र से देखना
उस दिन तुम्हे खुद से ही प्यार हो जाएगा
तो मेरी डायरी को तुम पढ़ना कभी वक़्त मिले
उस दिन मेरी हर बात पे ऐतबार हो जाएगा
उस दिन ' सूर्या ' का लिखना सफल होगा
जब तुम्हारा इज़हार पर इकरार हो जायेगा
©️shivkumar barman-
ये रिश्ता है हंसी मजाक का , हंसी वाली मुस्कान और गम वाले आंसू का
छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाने का , और फिर खुद ही मान जाने का
बहन वो जो हर आंसू छुपा दे भाई की खुशी के लिए
और भाई वो जो हर हद पार कर दे बहन की खुशी के लिए
बहन वो जो है राखी पर अपने प्यार को
धागे में संजोकर भाई की कलाई पर बांध दें
और भाई वो जो बहन की तकलीफ को
देखकर दुनिया का हर बंधन तोड़ दे
चिड़ने का और चिड़ाने का यह रिश्ता है
शरारतों के पिटारो का कहीं और अनकही बातों का
यह रिश्ता है बचपन की यादों का यह रिश्ता है
यह रिश्ता है प्यार की बगिया में विश्वास के फूल का यह रिश्ता है
जिसकी पंखुड़ी हर आंसू पी जाती है
जिसको देखकर चेहरे पर सिर्फ खुशी रह जाती है
जिसकी खुशबू जहन में और जिसकी तस्वीर यादों में
हमेशा के लिए कैद हो जाती है
एक भाई का उसकी बहन से रिश्ता है
मेरी राखी का तेरी कलाई से यह रिश्ता है
भाई दूज के तिलक से रिश्ता है ,भाई और बहन का यह रिश्ता है-
पहली किरण सुबह की निकल रही हैं ,
अंधियारा मिट रोशनी मुस्कुरा रही हैं ।
फिजाओं में खुशबू देखो छा रही हैं ,
पंछीयों की सुरेली सरगम आ रही हैं ।
ये पेड़ पौधे, आसमां ज़मीं झूम रही हैं ,
दीपोत्सव में हर दिशा खुशी छा रही हैं ।
आंखों में ना आये अश्क किसी के ,
खुशी के गीत जिंदगी हंस के गा रही हैं ।
अपना ना कोई पराया, धरा पे सबका बसेरा ,
किसी से अब कैसी दुश्मनी फ़िजा ये बता रही हैं।
जिंदगी के ज़ख्मों को कुदरत भर रही हैं,
फिर क्यूं तुम ज़ख्मों को को नासूर बना रहे हो ।
बन के सच्चा मित सभी का जीत लो चीत सभी का,
छोड़ो नफरतें,गले लगावों यही दिल से आवाज़ आ रही हैं।
छोटा ना कोई बड़ा,खुदा के बंदे सब हैं यहां,
नेक बंदे सभी बन रहें हैं,
ये देखकर 'ज़ाकिर' तेरी भी आंखें मुस्कुरा रही हैं।-
I was afraid of these silences till some time ago.
I used to wait for these unwanted silences now..
Because you come to me even after staying away.
You talk from my mind even without speaking..
Even without touching me with your Siamese fingers.
As soon as you touch your "first touch", I feel it even if you are there..
Bringing the morning's laughter back on my face.
You go missing from my dreams as if I have just woken up..
Then the same silence, the same wait but a different feeling.
Because even calling you here is my feeling and
The right on you only shows my feelings..
How can anyone take away my feeling from me?
Neither you nor anyone else this feeling - only I have the right to wait..-