मैं अक्सर ढूंढती हूं तुम्हें अपने ही अल्फाज़ों में तुम्हें दिख जाए ये तो भी तुम कुछ न कहना इश्क़ हो या प्यार देखो ये लफ्ज़ ही अधूरे हैं तुम मेरी मोहब्बत के अधूरेपन में शामिल रहना.....
तेरी ख़ामोशी का अब हम क्या जवाब दें चल अहसान मेरी मोहब्बत पर तू फिर कर दे कुछ अहसासों की ही तो बात है कह कर उन्हें या तो तू क़ैद कर ले या इसी खामोशी से रिहा कर दे........