तुम वही हो न जिसने,
एक लाश को ज़िंदा कर के,
मोहब्बत करना सिखाया,और
फिर मरने के लिए छोड़ दिया।
हम भी वही है जिसने,
ज़िंदगी जीने की ख्वाइश में,
मोहब्बत पर भरोसा कर के,
इतने टुकड़ों में बिखर गए,
की समेटने में उम्र गुज़ार दिया।
और ये दुनिया भी वही है जिसने,
फरेबी चेहरों के इस महफ़िल में,
दर्द सुनने पर जब तालियां की शोर हो,
तो हँसते हुए,शुक्रिया कहना सिखाया।
आखिर में बच गयी मेरी ये ज़िन्दगी,
जिसने सारी उम्र दर्द-ए-बे-दवा ढूंढने में
हर एक चौखट पर चोट के संग
आँखों मे अश्कों की सौगात पाया।
और जिसदिन मिला सकूं इस मर्ज से
तो जमाने ने फिर मुझे लाश कहकर बुलाया।
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