अपनों के तोड़ जाने से, बीच मँझदार में छोड़ जाने से ,
सपनों के टूट जाने से ,अपनों के रूठ जाने से ,
मन्नत के बिखर जाने से ,ख्वाब के छूट जाने से ,
सच मे ,अब फर्क नही पड़ता ।
हकीकत के फसाने से ,फरेब के ज़माने से ,
किसी के आ जाने से ,किसी के चले जाने से ,
सच में , अब फर्क नही पड़ता ।
किसी के आजमाने से ,किसी को आजमाने से ,
किसी के दुख के दर्द से ,किसी के खुशी के खजाने से ,
सच में, अब फर्क नही पड़ता ।
किसी के साथ होने से , किसी के छोड़ जाने से ,
किसी के कह देने से , किसी के मौन हो जाने से ,
सच मे, अब फर्क नही पड़ता ।
बेख़ौफ़ सी हो गई है ज़िन्दगी ,
अब तो ,सांस चले या ना चले ,
सच में ,अब फर्क नही पड़ता ।
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