Tripti Sharma   (Tripti sharma ✍️"शहज़ादी")
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Joined 18 November 2017


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Joined 18 November 2017
9 AUG 2023 AT 13:17

एक दौंर गुजर गया, अब एक दौंर आएगा,
तब कुछ ख़ो दिया था , अब कुछ नया पाएंगे।

जिन्दगी की लहरो में तैरतें चलें जाएंगे,
जैसी भी होगी , हँसके बिताएंगे ।

कभी मझ़धार मे होंगे, तो कभी किनारे पे आ जाएंगे ,
जितना हो सकेगा उतना खुद को आजमाएंगे ।

एक दौंर गुजर गया, अब एक दौर आएगा,
राहे मिलती रहेंगी , हम यूँही चलतें जाएंगे ।

कभी मन्जिल को दूर खड़ा पाएंगे ,
तो कभीं मन्जिल को नजदीक ही चाहेंगे ।

जिन्दगी तो हमे हर दम आजमाएगी ,
लेकिन हम हर पल अपना हौसला बढ़ाएंगे ।

कभीं ये जिंदगी नए-नए पाठ पढ़ाएगी ,
तो कभी रंगबिरंगी दुनियां से मिलाएगी ।

एक दौंर गुजर गया, अब एक दौर आएगा॥
ख्वाहिशों के पंख लगेंगे और पूरा आसमान घुम आएंगे।

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5 JUN 2022 AT 16:35

घूम रहा है चक्र समय का ,गति से एक निरंतर ,
छूट गए जो पीछे पदचिन्ह ,देखा नही है मुड़कर ..

चला गया जो एक दफ़ा, वो नही लौटकर आता है ,
लाख़ आवाजे दे दो लेकिन ,दूर कही खो जाता है ....

जैसे नदियो का ठहराव नही ,किसी एक किनारे पे ,
वैसे ही जीवन का अंत नही, किसी एक सहारे पे ....

कभी खुशियों का अम्बार लगा है ,कभी दुखों का लगे झमेला ,
कभी अकेले बैठे है ,तो कभी लगा है लोगो का मेला ...

बनते है जब संबंध नए, तो टूट जाते है पुराने ,
कभी रह जाते है अकेले ,तो कभी लगे सब याराने ...

बचपन ,यौवन और बुढ़ापा, हमको यही समझते है ...
मानव – जीवन में परिवर्तन हर क्षण होते जाते है ...

दृश्यमान सारे पदार्थ ही, एक ना एक दिन नष्ट हो जाते है ,
बनकर फसलें कल कट जाते ,बीज जो आज बोए जाते है ....

शाश्वत सत्य समझ स्वीकारें हम ,की जग में परिवर्तन निहित है ...
समय की धारा तय है , उसमे ही जीवन समहिलित है ....

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24 FEB 2022 AT 10:15

"पागल है .."
खिलखिलाती ,चहकती, वो बैठी है,बालकनी में,
दिमाग़ से पागल, हरकतों से पगली ...
सब कहते है ,मालिनी तेरी बिटिया पागल है .
चलती नहीं, बोलती नही,बस दस बरस से व्हीलचेयर पे रह रही है ......
सब हँसते है उस पे ...
लेकिन वो , सारा दिन बालकनी में बैठ, पेड़ो ओर पक्षियों को ताका करती....
एक दफ़ा.. आ गिरी एक चिड़िया सयानी ,शायद पतंग के मांझे के कारण पंख से घायल हो गए थी....
देख चिड़िया को घायल , रेंगते हुए आ पहुँची मुनिया उसे उठाने को....
उसे गोदी में लेके ,पैर घसीटते हुए बालकनी के
कोने में रखी भैया के सामान में से
फेवीक्विक निकल के ,
लगी वो पगली पंखो को चिपकाने ,
ये देख आस-पड़ोस की बालकनी से
झांक रहे लोग ,हँसने लगे ....
मालिनी ने जब ये देखा तो ,
आश्चर्य से सोच में पड़ गई ......

आखिर कौन है पागल ??????

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21 SEP 2021 AT 15:27

गिरे जो एक दफ़ा,तो कई बरसों तक किसी ने उठाया नही ...
जिंदगी तू गम ना कर ,अब खुद से सम्भलकर देखते है ...

सफ़र में धूप के बाद ,शायद आगे छांव से हो मुलाकात,
कदमों को मानते है , अब थोड़ा ओर चल के देखते है ...

किस किस से करे इल्तज़ा ,की बदल ना जाएं वो
ख़ुद की मर्जी से ही सही ,लेकिन अब खुद को बदल के देखते है ..

सुना है, बहुत बदला बदला सा है मौसम बाहर का ...
तनहाइयों को छोड़ ,थोड़ा घर से बाहर निकल कर देखते है ...

बरसों तक ,जो साग़र की लहरों को अपनी परछाई से दूर रखा ...
बर्फ जैसे जमे थे हम ,लेकिन कब खुद को थोडा पिघला के देखते है ...

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5 SEP 2021 AT 14:51

अब तक के बेहतरीन शिक्षक रहे "जीवन" को ,

शिक्षक दिवस की

हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

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2 JUN 2021 AT 18:01

एक खत जिंदगी के नाम ....

लिख के हर हसरत ,मैं तुमसे मिलने आऊंगा
ढेर सारे सवाल लेके ,तुमसे जवाब लेने आऊंगा ...

देख के अच्छा सा कोना ,किस्सों की चटाई बिछाऊंगा
मैं अपनी यादें लेके,तुम्हारी मजबूरियां जानने आऊंगा...

थोड़ा तुम भी कह देना ,मैं समझना तुमको चाहूंगा ...
आगे के हर पन्नों को ,मैं तुमसे सुनना चाहूंगा...

फलसफों वाले थैले से लोगों की ,राय निकालना चाहूंगा..
बस तुमसे ही मैं अपने, हर सवाल का जवाब जानना चाहूंगा...

मैं अपने बस्ते में से शीत हो चुके ,लम्हों को बिछाऊंगा...
फिर एक एक कर के, हर लम्हें को तेरे साथ में सजाऊंगा ...

दम तोड़ चुके अहसासों को,तुमसे फिर जीवित करवाना चाहूंगा...
हर अहसास को ,मैं हर स्वास में महसूस करना चाहूँगा..

ढेर शिकायतें है मुझे, बतलाना तुझे सारी चाहूंगा..
फिर हर शिकायत का हिसाब ,तुझसे ही मैं चाहूंगा...

पल भर के लिए सही ,लेकिन तेरे संग नई प्रीत निभाना चाहूंगा..
मिल तो सही ,तेरे लिए मैं बस्ता भर के सौगात लाना चाहूंगा...

मेरे अश्कों के हिसाब को ,मैं तुझसे पूछना चाहूंगा ...
कमजोर पड़ चुके हर रिश्ते की डोर से, मैं तुझे आगाह करना चाहूंगा...

लिख के हर हसरत ,मैं तुमसे मिलने आऊंगा
ढेर सारे सवाल लेके ,तुमसे जवाब लेने आऊंगा ...

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29 MAY 2021 AT 16:54

बचपन मे अक्सर मैं,ख्वाबों को पंख लगा दिया करता था ...
मिट्टी से सुंदर-अलीशान महल बना लिया करता था ...

टूटे हुए खिलौनो से, खुद को अमीर माना करता था.
अखबार की कतरन से, बेशक़ीमती खजाना बना दिया करता था ...

बैठ दीवार की मुंडेर पे ,आंसमा को मुठ्ठी मे समा लिया करता था ...
उड़ते पंछी को देख ,उड़ने की ख्वाहिश जगा लिया करता था...

चांद को देख ,बेवक़्त मुस्कुरा दिया करता था ,
तारों की फ़ौज को, अपनी जेबों में छुपा लिया करता था।।।

तितलियों के पंखों से ,कुछ रंग चुरा लिया करता था ,
जुगनुओं को पकड़ के, बोतल में बंद कर दिया करता था ...

झूलों पे बैठ, आसमान को छू लिया करता था....
टीडो में बाँध के रस्सी, अपना हेलीकॉप्टर उड़ा लिया करता था....

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19 APR 2021 AT 14:56

कमाल की है ये हाथों की लकीरें भी ....

खाल पे खिंच जाए तो ख़ून निकाल देती है ...
और
रिश्तों में खींच जाए तो सरहदें बना देती है ...
लेकिन
हथेलियों पे ऊभर आये तो क़िस्मत को तय कर देती है ...

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13 APR 2021 AT 12:33

किसी भी दौड़ में ,जब कोई व्यक्ति गिरता है ,
तो मदद अक्सर पीछे से आने वाला व्यक्ति ही मदद करता है ,
ना कि आगे निकल चुका इंसान....


और जब पीछे वाला गिरता है ,
तो आगे वाला मुड़ के भी नही देखता ...

"यहीं सच जीवन का भी है "
"पीछे वाले कि कभी अहमियत नही होती"

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13 APR 2021 AT 12:16

हम रिश्तों से नहीं भागते जनाब...
हमें मजबूर कर दिया गया है ,पीछे हटने को ....

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