घूम रहा है चक्र समय का ,गति से एक निरंतर ,
छूट गए जो पीछे पदचिन्ह ,देखा नही है मुड़कर ..
चला गया जो एक दफ़ा, वो नही लौटकर आता है ,
लाख़ आवाजे दे दो लेकिन ,दूर कही खो जाता है ....
जैसे नदियो का ठहराव नही ,किसी एक किनारे पे ,
वैसे ही जीवन का अंत नही, किसी एक सहारे पे ....
कभी खुशियों का अम्बार लगा है ,कभी दुखों का लगे झमेला ,
कभी अकेले बैठे है ,तो कभी लगा है लोगो का मेला ...
बनते है जब संबंध नए, तो टूट जाते है पुराने ,
कभी रह जाते है अकेले ,तो कभी लगे सब याराने ...
बचपन ,यौवन और बुढ़ापा, हमको यही समझते है ...
मानव – जीवन में परिवर्तन हर क्षण होते जाते है ...
दृश्यमान सारे पदार्थ ही, एक ना एक दिन नष्ट हो जाते है ,
बनकर फसलें कल कट जाते ,बीज जो आज बोए जाते है ....
शाश्वत सत्य समझ स्वीकारें हम ,की जग में परिवर्तन निहित है ...
समय की धारा तय है , उसमे ही जीवन समहिलित है ....
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