कहानी हर इर्द गिर्द बिखरी हुई है तेरे,
तुझे उसमें से कुछ ही खुद को सुनाना है।
भूसा मिलेगा तुझे देखने क़दम क़दम पे,
लेकिन तिनका सोने का उसमे तुझे पाना है।
संजीदा रख सोच तेरी कभी भटकना नही है,
नज़र रख के तीर सी अर्जुन को दोहराना है।
कभी गलेंगे हिस्से तन के कभी जिस्म जल जाएगा,
आसान तोह ना ज़िन्दगी है ना यह जमाना है।
अंधेरो में परछाई भी देती नही है साथ कभी,
खुद से मिलने को भी खुद को रोशन बनाना है।
(न्यायग्र)
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