बातों से नहीं उसकी
खामोशी से इश्क़ कर बैठे
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उसका नाम सुनते ही
गमज़दा होकर भी मुस्करा पड़ती हूँ
उस शख्स के नाम में भी कितनी तासीर हैं ...!!!-
मैं क्या करू
तुम बात भी तो नहीं करती ....
जज़्बातो को नज़्म में
कर दिया करती हो बया
मुझसे ना-तमाम सा
इजहार क्यों नहीं करती ...
और मैं क्या करू
तुम बात भी तो नहीं करती ....
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मोहब्बत तो थी ही एकतरफ़ा तुमसे ...
तुमने
तो मुझे दोस्ती भी एकतरफ़ा ही दी ..!!!-
ये ख्वाब इन आँखों का
मुकम्मल हो जाए
मैं तुझमे खुद को पा लु
तू मुझमे खो जाए .....
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क्या हर बात कहकर समझाना
ज़रूरी है तुमको
तुम बिना कहे सब समझ जाओ तो अच्छा
यकीन हैं ना मुकम्मल होगे
पल तेरे संग मुहब्बत के
फिर भी तुम मुझको मिल जाओ तो अच्छा
कलमे सा पढ़ती हुँ दिन रात तुम्हें
पर तुम ना ही याद आओ तो अच्छा
और ज़रूरी तो नहीं कि हर बात कहकर समझायी जाए
काश तुम बिना कहे़ समझ जाओ तो अच्छा ...-
अनकही तुम क्या समझते
जब समझे नहीं
नज़्मो में छिपे मायने कभी...
हूँ खड़ी आज भी मैं वहाँ
जहाँ तुम मेरे साथ थे कभी !!
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निकाल लाया हूं पिंजरे से इक परिंदा,
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना होगा-
"कौन लिखे मोहब्बत की कहानियां
कौन ऐतबार करे राँझने का
कितनी हीरें दिल के कूचे से निकलीं
और बेघर हो भटक रहीं ख़ानाबदोश सी
जब चाँद जल उठे और मिट्टी हो जाए सूरज
तो काली पड़ गयी हथेलियों की हिना
ऐ रब! आँख को आँसू दिए तो
आँचल को समंदर बना दिया होता..."
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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मैं अगर मैं ही हूँ, तो फिर तू क्या है,
मुझ में बसी तेरी ये रंग ओ बू क्या है।
एक मुद्दत से नाराज हैं हम अगर,
खामोशी कर रही ये गुफ़्तगू क्या है।
बेचैन कर देती है बज़्म आजकल
फिर तेरी सोहबत में ये सुकूं क्या है।
है उजड़ा आशियाँ अंधेरों भरा ये,
तेरे होने से रोशनी सी चारसू क्या है।
पामाल हो चुकी हर ख्वाहिश मिरी,
तुझे देख मचलती वो जुस्तजू क्या है।-