सिक्के के पहलू एक नहीं दूसरा भी है।
खैरात जो देता है वही लूटता भी है।
दर्द-ए-दिल ले कर किधर जाएंगे,
कैसी चल रही जिंदगी कोई पूछता भी है।
नीलाम कर दिया खुशियाँ भरे बाजार तेरे लिए,
अब मेरे दिल में बचा क्या कोई सोचता भी है।
वैसे तो बहुत झेली है बेरूखी हमने,
पर इनमें कुछ पल हसीन सा भी है।
दिल ने फितरत भी किसी बच्चे सी पाई है,
पहले जिसे खो दे उसे फिर ढूँढता भी है।-
शीर्षक- हाँ!! मुझे इक आखिरी मुलाकात चाहिए ॥
तेरी बाँहों में रह कर जो पूछे थे कुछ सवाल मैंने,
आज उन तमाम सवालों के जवाब चाहिए।
हाँ!! मुझे इक आखिरी मुलाकात चाहिए॥
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मैंने पूछा एक पल में जान कैसे निकलती है...
उसने चलते चलते मेरा हाथ छोड़ दिया...!
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अा तुझे फिर से जी लूं ऐ जिन्दगी
अब उनका जी भर गया तुझे बर्बाद करते करते।।-
मोहब्बत अब दायरे में सिमट गयी है,
जब से हुज़ूर ने नज़रें घुमा लीं हैं।।-
दिल इस कदर टूटा की वक़्त भी मरहम ना बन पाया,
कसूर इतना था बस,
इक बेवफा को बड़ी सिद्दत से चाहा था मैंने।।-
दुनिया के हर तकलीफों से वाकिफ़ हूँ मैं अब,
पर तेरी आँखों से ज्यादा फरेब ना दिखा कहीं।
यूँ तो चख ली मिठास शहद की भी हमनें,
तेरे इश्क़ से मीठा कुछ भी ना दिखा कहीं।।-
आवाज सुन कर ही दूरी बना लेता है,
वो मेरी बाँहों में रहने वाला अब मुझे देखना भी नहीं चाहता।-