QUOTES ON #MIZO

#mizo quotes

Trending | Latest
27 FEB 2019 AT 15:41

Ka thinlai luahtu hian hniak awm lovin min chhuahsan ni se chu, midang luah tlak ka la ni awm si a.

-


13 FEB 2020 AT 22:59

Ka thinlung omega chu i ni
Hmangaihna ka suangtuah a a inghahna chu
Hmeichhe dik tak ka ngaihtuahin
Ka rilru a rawn lang hmasa ber chu i ni
I hrethiam pumhlum thei ngai lo ang
Ka THINLUNG'in thinlung taka a duhna che hi
Kan inkar a hlat tial tial a
A tawp a ka chan che hi ka hlau a ni
Mipat hmeichhiatna tel map lo in a nuam vawrtawp min thlenpui a
Khawngaihna ni si in zahawm tak in i ti vek thung
Ka thinlung hringmi a rawn in lâr ngei chu i ni
Ka thian eng tik khaw tik ah mah
Ka thlak theih loh tur chu

-


27 JUL 2021 AT 15:19

कोई और के बीच में हम में से हैं कोई नहीं
ख़त कोई लिख रहा तो लड़ रहा और कोई

-


21 MAY 2020 AT 7:41

*”आहार-शुद्धि”* नामक पुस्तक के *”आहार-शुद्धि”* नामक लेख से –
(परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)

प्रश्न‒ अगर शरीर रहेगा तो मनुष्य साधन-भजन करेगा; अतः अभक्ष्य-भक्षण करनेसे अगर शरीर बच जाय तो क्या हानि है ?
उत्तर‒ अभक्ष्य-भक्षण करनेसे शरीर बच जाय, मौत टल जाय ‒ यह कोई नियम नहीं है । *अगर आयु शेष होगी तो शरीर बच जायगा और आयु शेष नहीं होगी तो शरीर नहीं बचेगा; क्योंकि शरीरका बचना अथवा न बचना प्रारब्धके अधीन है, वर्तमानके कर्मोंके अधीन नहीं ।* अभक्ष्य-भक्षणसे शरीर बच नहीं सकता, केवल शरीरकी किंचित पुष्टि हो सकती है, पर अभक्ष्य-भक्षणसे जो पाप होगा, उसका दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा ।

मनुष्य साधन-भजनका तो केवल बहाना बनाता है, वास्तवमें तो शरीरमें राग-आसक्ति रहनेसे ही वह अशुद्ध दवाइयोंका सेवन करता है । *जिसका शरीरमें राग नहीं है, जिसका उद्देश्य अपना कल्याण करना है, वह प्रतिक्षण नष्ट होनेवाले शरीरके लिये अशुद्ध चीजोंका सेवन करके पाप क्यों करेगा ?*

-


10 MAY 2020 AT 23:40

*”सत्संगका प्रसाद”* नामक पुस्तक के *”ममताका त्याग”* नामक लेख से –
(परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)

श्रोता- तत्त्वका बोध होनेसे पहले ममता, कामना कैसे मिटेगी ?

स्वामीजी- तत्त्वका बोध होनेसे ममता मिट जायगी और ममता मिटनेसे तत्त्वका बोध हो जायगा । खुशी आये, ज्यों कर लो । आपको जो सुगम पड़े वह काम कर लो । कामना-ममताके रहते-रहते तत्त्वबोध हो जायगा ! आप ध्यान दो मेरी बातपर । गीताकी बात हैं-

*अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।*
*सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ।।*
- (श्रीमद्भगवद्गीता - ४ । ३६)

सम्पूर्ण पापियोंसे भी जो अधिक पापी हो, वह भी ज्ञानरूपी नौकासे पापोंको तर जायगा । अतः पापी-से-पापी भी ज्ञानका अधिकारी हुआ कि नहीं ? कामना तो दूर रही, पापी बताया है । *मनुष्य कामनाके कारण ही पाप करता है (श्रीमद्भगवद्गीता - ३ । ३६-३७) ।* कामनासे होनेवाले बड़े-बड़े पापोंसे आप तर जाओगे । तात्पर्य है कि ज्ञान पहले भी मिल सकता हैं और कामना-ममताके त्यागसे भी मिल सकता हैं-

*विहाय कामान्यः सर्वान् पुमांश्चरति निःस्पृहः ।*
*निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ।।*
- (श्रीमद्भगवद्गीता - २ । ७१)

‒ ये दोनों प्रमाण गीतामें हैं । कामनाके विषयमें मेरेको ऐसी बहुत बातें याद हैं । इस विषयमें मैंने बहुत खोज़ की है और कर रहा हूँ ।

*नारायण ! नारायण !! नारायण !!!*

-