हमारे बाद भी इक उम्र तक जियेगी ग़ज़ल,
हमारी आपकी कहानियाँ कहेगी ग़ज़ल।
अश्आर मेरे सुन रहे हैं इतनी शिद्दत से,
ज़हन में साथ साथ आपके रहेगी ग़ज़ल।
रुदाकी सादी शिराज़ी से मीर जॉन तलक,
हर इक सदी में नए रूप में ढलेगी ग़ज़ल।
है मौसिक़ी औ मयकशी में ज़रा फ़र्क़ नहीं,
कि तिरे सर पे गो शराब सी चढ़ेगी ग़ज़ल।
कभी ये ठण्डी छाँव देगी तुझे सहरा में,
अलाव बन के सर्द रात में जलेगी ग़ज़ल।-
नफ़रत है मुझे मोहब्बत के नाम से!
ये ज़िन्दगी से सुकूं जो छीन लेती है!!
इश्क़ से तो ये मौसिक़ी बेहतर है!
ये आँखों को नींदें और दिल को करार जो देती है!!-
नई सरकार ने नुस्खा नया ईजाद कर डाला,
हुई नाकाम जब भी, हिन्द ज़िंदाबाद कर डाला।
कहाँ है मौसिक़ी बाकी, कहाँ सच्चे से सुर हैं अब,
जो बेसुर थे, मशीनों ने उन्हें उस्ताद कर डाला।
है ज़ीनत हद में रहकर ही, हर इक शै की ज़माने में,
जहाँ हद से बढ़ा पानी, तो सब बर्बाद कर डाला।
मिली मज़हब में जब इंसान के खूं की हवस, उसने,
कहीं कश्मीर को नोचा, कहीं बग़दाद कर डाला।
तू जिनकी उँगलियों को थाम कर चलना कभी सीखा,
क्यों उन माँ बाप को बिसरी हुई रूदाद कर डाला।
मुझे बांधा था ज़ंजीरों में दो सौ साल तक और फिर,
मेरे दोनों ही बाज़ू काट कर, आज़ाद कर डाला।
मैं अपना दर्द सीने में छुपा के पहुँचा महफ़िल में,
मुझे शायर समझ उन्होंने भी इरशाद कर डाला।-
Teri Aawaaz
Mein Lipte Alfaaz
Mere Liye
Mausiqi Ka Har Saaz-