वसीयत हस्ताक्षर मांग रही है.
गांव के मुहल्ले में शहर वालों
हम अनपढ़ है कहां कर पायेंगे.
पेशा होगा ये शहर में तुम्हारा क्यों?
पैसे से बस्ती खरीदने चले हमारी.
ये इमां वाले है सहाब कहां बेच पायेंगे.
अंगूठा लगा देते हम अगर
स्याही ये मिलाबटी ना होती .
मरा जमीर, गजब बाधे पे
हम वाह कहां कर पायेंगे.
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लफ्जों में खता रख, गले का हार नहीं हूं.
जीत की तलब हूं, किसी का यार नहीं हूं
उम्दा गजब शायरी ये हुनर कहां किसी का.
ये लफ्ज सब रहमत के, मैं कोई सार नहीं हूं.
जमीर से ईमां तक बहुत सौदे किये तुमने
सौदा मैं भी हो जाऊं गर कोई बाजार नहीं हूं.
फूल लेके मिलने जुलने मत आया कर दोस्त .
ज़िन्दा हूं अभी बशर मरा कोई मजार नहीं हूं.
शादी इश्क की गम मोहब्बत का नाच उठा .
शौक से नाचता हूं पर कोई नाचार नहीं हूं.
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अजीब मुकाम पर ठहरा है ,काफिला मेरी सांसो का,
सुकून देने पहुंची थी , इल्ज़ाम ले बैठी !!
Shikha bhardwaj ✨-
सुनो...
ज़रा वक़्त निकाल कर मेरी कविताएं पढ़ लिया करो,
यूं चंद लफ़्ज़ों में सब कुछ बयान करना अब मुझे गवारा नहीं!-
एक रात बैठे हम यूँ जागते रहे,
वो हमे और हम उन्हें ताकते रहे।
हमे देखकर वो यूँ मुस्कराते रहे,
और हँसी के पीछे उदासी छुपाते रहे।
मिलने बिछड़ने के डर हमे सताते रहे,
फिर भी प्यार का दीपक हम जलाते रहे।
लफ्जो को छोड़ नजरे हम मिलाते रहे,
नजरो ही नजरो मे प्यार हम जताते रहे।-
Best friend ने हमसे पूछा, कितना मोहब्बत है इस मीत से।
लफ्जों में केह ना सके जो, जता दिया एक कंटाप खिंच के।-
भीतर लफ़्ज़ों का सैलाब सा उमड़ा पड़ा है,
लेकिन ये ख़ामोशी की नाव है कि डूबती ही नहीं!-
Chehre to kai mile par teri talash abhi bhi jari hai,
Ajmaya to humne bhuto ko, ab khud ki bari hai.....😇-
लफ्ज़ों में क्या बयान करू माँ को,
उनके अल्फाजों से तो मैं खुद बना हूं।
#HappyMother'sDay-
वैसे तो मसले.....................बहुत है लिखने के लिए ,,
पर मेरे लफ़्ज भी इंतजार करते हैं तुझमें दिखने के लिए,,-