फ़िराक़ मत करना अब ए हमसफ़र.........
मैं जीते जी मर जाया करता हूँ...........,
फिर जब कुर्बतें होती हैं ना रिश्ते में हमारे...,
मैं गुलज़ार हो जाया करता हूँ...... ।।-
तेरी रूह छूने लगी है रूह को मेरी..........
कहीं फ़िर ये आहट कुर्बतों की तो नहीं।।-
ख़बर तेरे आने की, तेरा आना इत्तेफ़ाक़ हो
हिज़्र की आबोहवा में, क़ुर्बतों की रात हो।।-
तुम्हारी कुरबत में खुद को मयस्सर कर लिया
मशरूफी का हवाला देकर तुमने मरासिम को ही सिफ़र कर दिया-
यूँ तो अश्क आंँखों से नहीं बहते,
पर दिल तेरे लिए बेइंतहा रोता है,
प्यार में दूरी कहां समझता है ये
सोचता है इश्क कुर्बत से होता है।
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ये जो मुलाक़ातों के सिलसिले चल निकले हैं,
थोड़ा ऐतिहात रखना
मेरी कुर्बतों में रहना आदत ना हो जाए।-
Teri tishnà ki talab bekhudi si hai,
Tere ashiq se meri kuch ranjish si hai,
Teri qurbat ki kashish mohbbat hi hai,
Teri mohbbat ki aamaada aqeeda si hai...❣️-
नया वक़्त नहीं,
नया ज़माना साथ लायी हुँ
छोड़ दे ये आंसुओ का सफर,
खुशियों का किनारा साथ लायी हुँ
ऐसा भी क्या गम इस ज़माने में
तेरे गमों को जो,
तब्दील कर दे मुस्कान में,
ऐसी मैं कुर्बत साथ लायी हुँ
©Devika parekh-
इश्क़ मेरा बिखरा पड़ा होगा कहीं आख़िरी इल्तज़ा की तरह जिस साम में मेरी आख़िरी सांस होगी,
मै भूल जाऊँगी अपनी रुह को भी जिस पल इस वतन को मेरी जरूरत होगी।।-
कुर्बत मांगी थी ऐ खुदा तुझसे,
तूने जुदाई उम्र भर की नवाज़ दी
बिन बोले बिन चाहे,
हर इक आस दिल की मिटा दी,
कहाँ से लाऊँ हौसला,
ज़िन्दगी गुज़ारने का,
तूने तो फना होने से,
खुद ही मोहब्बत करा दी
©Devika parekh-