मैं तो एक इंसान हूं, इंसानियत मेरा काम है|
इस दुनिया ने दिए मुझे कई सारे नाम है|
कोई कहे मुझे सिख, कोई कहे मुस्लिम,
कोई हिन्दू, तो कोई कहता ईसाई है|
पर, इन सब ओहदो से भला मुझे क्या काम है|
मैं नहीं जानता इन दीवारों के पीछे किसका नाम है|
पर मैं इतना जानता हुँ, मुझे बांटने वाले भी इंसान है|
किसी ने मुझे जला दिया, किसी ने मुझे दफना दिया|
आखिर कर मुझे मिट्टी में ही मिला दिया|
अब बता मेरी क्या पहचान है, तू तो बॉटने में महान है|
नहीं बता पायेगा तू, क्योकि तेरे गढना का तू ही अंजाम है|
पर माफ़ कर मुझे, तेरी गढना से मुझे क्या काम है|
मैं तो आया इंसान था और जाऊंगा भी इंसान हुँ|
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