अंधेरों से क्या शिकायत करना
गर उजाला होता भी तो क्या होता
तू मेरी तकदीर में ही नहीं था
गर दुआओं में होता भी तो क्या होता
उम्मीद बर आना मुश्किल था
गर तेरा इंतज़ार होता भी तो क्या होता
सदा- ए- दिल ही न सुन सका
नज़रों का इशारा होता भी तो क्या होता
लिखा था नसीब में फासला
गर तू करीब होता भी तो क्या होता
तेरी मंज़िल तो कोई और है
तू मेरा हमसफ़र होता भी तो क्या होता
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