अक्सर लोग जानते हुए भी दिल दुखा जाते है फिर अन्जान बनकर कहते हैं,
माफ करना यार मेरा वो मतलब नहीं था...
पुराने जख्मों को महफिलो मे मजाक का नाम देकर कुरेदते है फिर पुछते है,
दिल पे मत लेना यार मज़ाक था...
अच्छे से जानते है कि किस बात से दिल दुखता है मेरा फिर भी करते वही है और नादां बन कर कहते है,
यार हो गया तुम जानते हो ना मेरे लिए तुम क्या हो...
चाहे अपने दिल के हजार टुकड़े कर दे फिर भी आकर दिखावे का हाथ पकड़ के पुछते हैं,
तुम बुरा तो नहीं मान रहे ना समझा करो तुम नही समझोगे तो कौन समझेगा...
फिर भी उम्मीद मुझसे उन रिश्तों को निभाने कि की जाती है...
क्या सच मे दिखायी नही देता किसी को कि मेरा दिल भी दुखता है ,बुरा भी लगता है या किसी को फर्क ही नही पड़ता की मुझें कैसा महसूस होता है...
या मैं बस काम आने की वस्तु भर ही हूँ
"मुझें कोई इंसान ही नही समझता "
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