होने थे जितने खेल , मुकद्दर के हो गए
हम टूटी नाव लेके , समन्दर के हो गए
खूशबू हमारे हाथ को छूकर गुजर गई
हम फूल सबको बाँट कर , पत्थर के हो गए
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अरे ! आओ ,चले आओ
मेरा दिल लाये हो क्या....
टुकड़ो-टुकड़ो में दिया था तुम्हें
जोड़ कर सिल लाये हो क्या....
कट ना रहे दिन जिंदगी के
देने मुझे मुश्किल लाये हो क्या....
ज़ख्मी क्यूँ हो ,रूह से तुम
पकड़ के मेरा कातिल लाये हो क्या....
🖤🤍-
जिंदगी जीने का सलीका सीखने चले थे हम...
कुछ ने मेरी आँखो से ख्वाब ही छिन लिये !!
हाथ तो कुछ बचा नहीं मेरे...ये खाली न रहे...
हम ने खुद के टुटे हुए टुकड़े ही बीन लिये !!-
जज़्बातो का गहरा है जितना स्पन्दन,
फकत उतना गहरा न कोई समन्दर।
न कर परवाह हर्फ-ओ-तमाशबीनों की
इक तेरा मुकद्दर और तू ही सिकन्दर ।।-
ये जरूरी तो नहीं, लब पे सवाल आ जाए
कितना अच्छा हो, तुम्हें ख़ुद ही खयाल आ जाए-
एक समन्दर है, जो मेरे काबू में है
और एक कतरा है, जो मुझसे सम्भाला नहीं जाता
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BE SILENT
. When you are angry
. When people don't value your words
. When you want to listen to people-
मोहब्बत का सिलसिला
कुछ यूँ चलाया हमने ,
खुद को खोया , उसमें खोया ,
खुद को न पाया हमने-